हममें से ज्यादातर लोग सामाजिक बदलाव में मोबाइल की भूमिका को लेकर सजग नहीं हैं। चलिए कुछ उदाहरणों पर गौर करते हैं। बिहार में अनन्या कार्यक्रम के तहत आठ जिलों में ‘मोबाइल कुंजी’ के इस्तेमाल का अनूठा प्रयोग किया गया है। यह पहल बिहार में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने वाले कर्मियों की भरपूर मदद कर रही है और लोगों को स्वास्थ्य सेवा संबंधी जानकारियां उपलब्ध करा रही है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में मिड-डे मील कार्यक्रम की नियमित निगरानी के लिए इसके कर्ताधर्ता ‘इंटरेक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सिस्टम’ का इस्तेमाल कर रहे हैं और सूबे के करीब डेढ़ लाख स्कूलों को उन्होंने मोबाइल टेक्नोलॉजी से जोड़ रखा है। कोणार्क, ओडिशा में ‘रेडियो नमस्कार’ एक कार्यक्रम प्रसारित करता है, जिसका नाम है- चला स्कूल कु जिबा (चलो, स्कूल चलें)। इसका मकसद उन बच्चाों को दोबारा स्कूल से जोड़ना है, जिन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। इसके लिए यह रेडियो स्टेशन मोबाइल के टेक्स्ट व नि:शुल्क फोन सेवा की मदद ले रहा है। इसकी कामयाबी का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि गोप ब्लॉक में बीच में पढ़ाई छोड़ने की फीसदी शून्य स्तर पर आ गई है। ‘किसान संचार’ वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों व उन संस्थानों के लिए आपसी संवाद का एक अद्भुत प्लेटफॉर्म है, जिनके उत्पादों या ज्ञान का फायदा 12 राज्यों के 3,50,000 किसान उठा रहे हैं।
किसानों को ये जानकारियां स्थानीय भाषा में टेक्स्ट व आवाज, दोनों रूपों में दी जाती हैं। गुजरात में करीब बीस लाख गर्भवती स्त्रियों व एक करोड़ बच्चों को मोबाइल अलर्ट से स्वास्थ्य सूचनाओं का लाभ मिल रहा है। मिसाल देने लायक ऐसी खामोश कवायदें और जगहों पर भी हो रही हैं। फिर भी, ये सभी कोशिशें अभी नाकाफी हैं, क्योंकि इनमें से ज्यादातर अभी प्रयोग के स्तर पर हैं या फिर उन्होंने अभी पूरे राज्य को कवर नहीं किया है। लेकिन मोबाइल आधारित ये सभी संचार बदलाव के वाहक हैं और इन्हें उन मोबाइल उपभोक्ताओं ने अपनाया, जो दूर-देहात में रहते हैं या फिर वे मेट्रो शहरों से काफी दूर के बाशिंदे हैं। सामाजिक बदलाव का सबसे जरूरी कारक संचार है। चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की बात हो या फिर स्वास्थ्य, बाल व परिवार कल्याण एवं शासन के मामले में परिवर्तन की। करीब 25 करोड़ महिलाएं आज मोबाइल का इस्तेमाल कर रही हैं। सवा अरब आबादी वाले इस मुल्क में फरवरी तक 86.10 करोड़ लोगों की पहुंच में मोबाइल आ चुका था। इनमें से 33.3 करोड़ ग्रामीण हैं, जबकि 52.8 करोड़ लोग शहरी हैं। ऐसे में, योजना बनाने वाले लोग मोबाइल के फीचर के हिसाब से अपनी सेवाएं इन्हें दे सकते हैं। वह सेवा टेक्स्ट, फोटो, जिंगल, वीडियो, आवाज, रिकॉर्डिंग कैसी भी हो सकती है। तमाम मंत्रालयों, संबंधित महकमों, संगठनों को इसके लिए साथ आना चाहिए।
Click here to read this column at livehindustan.com