आज के इंटरनेट युग में किसी भी विकासशील देश की आर्थिक प्रगति उसकी युवा शक्ति और गांवों के विकास पर निर्भर होती है। जैसे जैसे वो तरक्की करता है वैसे-वैसे देश की अर्थव्यवस्था में उसका योगदान बढ़ता चला जाता है।
ठीक इसी प्रकार, भारत जैसे विकासशील देश की भी यही कहानी है। इसकी अनेकता में एकता के पीछे एक बड़ी युवा जनसंख्या और ग्रामीण संस्थाओं का हाथ है। जिसकी वजह से अनेक विषमताओं के होते हुए भी आज कृषि प्रधान देश प्रगति के पथ पर है। इसी कृषि प्रधान देश में करीब 2,50,000 पंचायतें हैं, जिससे जुड़ी कई ग्रामीण संस्थाएं सक्रीय है। इन सबमें एक समानता यह है कि यह सभी स्थानीय समस्याओं, मतभेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एवं आर्थिक विकास में एकजुट होकर योगदान करते हैं।
लेकिन, इस विकास की दौड़ में शामिल कुछ अपवादों को अगर हम छोड़ दें, तो सामूहिक तौर पर दूर दराज गांवों में अत्यधुनिक सूचना एवं प्रसारण तकनीक की कमी साफ झलकती है, जिससे ग्रामीण इलाकों में कोई भी कार्यक्रम एक सीमा में बंध कर रह जाता है। यही कारण है कि उनके राष्ट्रीय विकास की नीति में योगदान भी सीमित है।
हालात ये हैं कि दुनिया भर में सूचना एवं तकनीक से जुड़ी सेवाओं के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी माना जाने वाला देश भारत अपने ही घर में भारत डिजिटल डिवाइड जैसी समस्या से जूझने को मजबूर है।
एक सर्वे के मुताबिक भारत की 80 फीसदी से अधिक जनसंख्या आज भी तकनीकी रूप से निरक्षर है। ये डिजिटल डिवाइड औऱ इसके परिणाम भारत की दूरगामी स्थिरता, विकास और शक्ति के लिए काफी बाधक साबित हो सकते है। हाल ही में प्रकाशित आईटीयू की रिपोर्ट में भी भारत को 155 देशों की सूची मे 119वें स्थान पर रखा गया है।
विडंबना यह है कि बाकी देशो के मुक़ाबले भारत में इंटरनेट का तेजी से विस्तार होने के बावजूद भारत में सिर्फ 10 फीसदी लोग ही इंटरनेट से जुड़ पाए हैं। मैकेंजी रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करते हुए कहता है कि इस गति से 2015 तक भारत में 330 मिलियन लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे होंगे, जो इसे विश्व की दूसरी सबसे बड़ी इंटरनेट से जुड़ी जनसंख्या बनाने के लिए काफी है। इसके बावजूद बड़ी संख्या के बाद भी भारत में इंटरनेट फैलाव केवल 28 फीसदी ही होगा। यह एक आश्चर्यजनक बात है कि भारत को इंटरनेट फैलाव को 40 प्रतिशत तक पहुंचाने के लिए, यह वो दर है कि जो चीन के 2015 के इंटरनेट फैलाव का लक्ष्य प्राप्त करेगी, भारत को 50 करोड़ इंटरनेट यूजर्स बनाने होंगे। यह एक आसाना लक्ष्य नहीं है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में तीन मुख्य चुनौतियां हैं, इंटरनेट की सीमित पहुंच, कम प्रासंगिकता और ऊंची लागत।
ऐसी स्थिति में देश में एक नई सोच और कोशिश की जरूरत है, जो इस चुनौतियों का समाना करते हुए गांव के हर शख्स को डिजिटल साक्षर बना सके। इसी के मद्देनजर उद्योग जगत और सामाजिक संस्थाओं की साझा कोशिश से पिछले साल नेशनल डिजिटल लिटरेसी मिशन (एनडीएलएम) की शुरुआत की गई। सन 2012 में इंटेल और नेसकॉम (NASSCOM) की मदद से डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई इस पहल का मकसद भारत में डिजिटल डिवाइड जैसी समस्या से करोड़ों लोगों को निजात दिलाना और उनकी तकनीकी निरक्षरता को दूर करना था। इस अभियान के तहत देश के तीन चुनिंदा पंचायतों में हर परिवार से एक व्यस्क को डिजिटल साक्षर बनाया गया।
भारत के उन तीन पंचायतों में 12 महीने तक चले “फॉलो द फाइबर” प्रोग्राम कई मायने में अहम रहा। इस प्रोग्राम के तहत तीनों पंचायतों में 1700 घरों के एक-एक सदस्य यानि 1700 लोगों को डिजिटल रूप से साक्षर बनने का मौका मिला।
हालांकि, तीनों पंचायतों में एनडीएलएम काफी प्रभावी रहा है, जिसमें राजस्थान में अजमेर जिले का अरांई पंचायत भी शामिल था। जहां सबसे अधिक 956 ग्रामीणों को कंप्यूटर और इंटरनेट की शिक्षा दी गई।
दरअसल, अरांईं गांव, अजमेर जिले के एतिहासिक शहर किशनगढ़ के पास बसी शायद सबसे बड़ी पंचायत है। इसकी जनसंख्या लगभग 2000 परिवारों सहित 6149 है। पुरुषों की संख्या 3187 है तो महिलाएं 2962 और बच्चों की संख्या 1077 है। यहां की साक्षरता दर 80 प्रतिशत है जिसमें 78 प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं तो 62 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं। लेकिन, एनडीएलएम से पहले डिजिटल साक्षरता के संबंध में दूसरे गांवों की ही तरह यहां भी लोग अंजान थे। अरांईं गांव में ब्लॉक मुख्यालय, बैंक, अस्पताल, पुलिस स्टेशन, डाकखाना, बस स्टैंड और बहुत सारे सरकारी दफ्तर होने के बावजूद यहां पर डिजिटल साक्षरता या इंटरनेट का चलन कभी नहीं रहा। ऐसे में यह बहुत बड़ी चुनौती थी।
लेकिन, एनडीएलएम के तहत डिजिटल साक्षरता प्रोग्राम के जरिए कई युवाओं को डिजिटल साक्षर किया गया और जिससे रोज़गार प्राप्त करने में सहायता मिली। एनडीएलएम के बाद के किए गए सर्वेक्षण के नतीजों में सामने आया कि अरांई के 95 प्रतिशत शिक्षार्थी अब गूगल से जानकारी प्राप्त करने लगे हैं। 40 प्रतिशत शिक्षार्थी फेसबुक इस्तेमाल करते हैं तो 89 फीसदी लोग अब संपर्क के लिए ई-मेल का इस्तेमाल कर रहे हैं। एनडीएलएम ने अराईं में जहां पुरुषों को एक नई राह दिखाई है वहीं लड़कियों और महिलाओं ने भी कंप्यूटर और इंटरनेट की शिक्षा लेकर आज अलग अलग रोजगार और उच्च शिक्षा पाने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं।
इसी सफलता के उपलक्ष्य में 30 सितंबर 2013 को अराँई में इंटेल औऱ डीईएफ ने संयुक्त रूप से एक सम्मान समारोह आयोजित करने का फैसला किया है। इस सम्मान समारोह में वैसे ग्रामीणों को सम्मानित किया जाएगा जो कल तक अपना भविष्य सिर्फ खेतों में देखते थे, लेकिन आज कंप्यूटर सीखने की वजह से नए रोजगार में व्यस्त हैं। अब उनकी उंगलियां खेतों में हांकते बैल या कुदाल पर नहीं, कंप्यूटर की की-बोर्ड पर थिरकते हैं।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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