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पूरे भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। अगर इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) और आईएमआरबी की रिपोर्ट मानें तो भारत में पिछले साल तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 15 करोड़ पहुंच गई है। इसमें ग्रामीण भारत की बहुत बड़ी भूमिका है, जहां इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) और आईएमआरबी की रिपोर्ट में दावा किया था कि देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या दिसंबर 2012 तक बढ़कर 15 करोड़ होने का अनुमान है। रिपोर्ट में शहरी भारत में 10.5 करोड़ और भारत के गांवों में 4.5 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता होने की बात कही गई थी।
वैसे भी भारत दुनिया के उन 3 प्रमुख देशों में शामिल हो चुका है जहाँ तक इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। जहां अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन, एक तरफ जहां इंटरनेट का उपयोग करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, वहींसरकार की दखलंदाजी भी बढ़ी है। इसी सिलसिले में पिछले दिनों सरकार या किसी नेता के खिलाफ फेसबुक या ट्विटर पर टिप्पणी के बाद कई गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं।
दरअसल,आज दुनिया की एक बड़ी जनसंख्या इंटरनेट के जरिए जुड़ी है, जिसे नियंत्रित करने का कोई एक तंत्र नहीं है। वैसे तो कई मायनों में इंटरनेट वास्तविकता से कोसों दूर है, फिर भी इंटरनेट वास्तविकता के बेहद करीब होती जा रही है। जिसका नतीजा है कि इनदिनों लोग इंटरनेट पर काफी सक्रिय और मुखर होते जा रहे हैं।
जहाँ तक कंटेंट, विचारों और सक्रियता का सवाल है, इंटरनेट मुख्यतः उपयोगकर्ता से प्रभावित है। उदाहरण के तौर पर अगर मैं अपने फेसबुक पेज की बात करुं तो, मुझे नहीं लगता है कि मेरे करीब 2000 फेसबुक मित्र मेरे द्वारा शेयर किए गए किसी विचार या फोटो पर एक साथ मुझसे बात कर सकते हैं। लेकिन इंटरनेट की काल्पनिक दुनिया में मैं उन्हें दिखा सकता हूँ, उनकी प्रतिक्रियाएँ पा सकता हूं और उन प्रतिक्रियाओं को दूसरों के साथ बाँट भी सकता हूँ।
इसके अलावा, अगर मैं किसी लोकप्रिय हस्ती, राजनीतिज्ञ या धार्मिक नेता को पसन्द या नापसन्द करता हूँ, तो उसे मैं अपने सिर्फ सिमित मित्रों, परिवार, सेमिनार या कॉफ्रेस में साझा कर सकता हूँ। लेकिन, अगर मैं वही काम इंटरनेट की काल्पनिक दुनिया में करता हूँ तो मेरे सभी मित्र मेरी पसन्द या नापसन्द को देख सकते हैं और जिसका एक खास प्रभाव हो सकता है। साथ ही इस पर और आगे चर्चा भी हो सकती है।
दरअसल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के आने के बाद हमारे बीच एक बहुत बड़ा बदलाव आया है। जिसका नतीजा ये है कि आज हम धीरे धीरे कॉन्टेंट युग में प्रवेश कर रहे हैं। हर शख्स अपनी बात, अपने विचार इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए कई लोगों के बीच आसानी से पहुंचा सकता है।
इतिहास गवाह है कि कैसे आम लोग समय के मुताबिक तेजी से बदल जाते हैं। लेकिन, उतनी तेजी से सरकार, शासक व संस्थाएँ नहीं बदल पातीं। समुदाय, समाज, भौगोलिक स्थिति, नस्ल व आर्थिक व्यवस्था के आधार पर वो अपना समय लेती हैं।
2012 फ्रीडम ऑफ द इंटरनेट रिपोर्ट के मुताबिक, “सोशल मीडिया यानि यूजर जेनेरेटेड कॉन्टेंट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी के मद्देनजर, दुनिया में कई सरकारें नये कानून बना रही हैं, ताकि ऑनलाइन विचारों को नियंत्रण किया सके और इनका नियम उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सके। बहुत से देशों में ऐसे कानून हैं जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा या साइबर अपराध को हित में रखकर बनाये गये हैं, लेकिन इसे बेहद वृहद रूप में परिभाषित किया गया है, जिसके चलते ऐसे कानून आसानी से राजनीतिक विरोधियों के विरूद्ध इस्तेमाल किए जा सकते हैं।”
इस रिपोर्ट से ये पता चलता है “विभिन्न सरकारों के जरिए ऑनलाइन पोस्टिंग की आजादी पर पहरा लगाने के लिए अनेकों जतन किये जा रहे हैं। उनमें कॉन्टेंट पोस्टिंग पर रोक लगाना व चुनकर प्रकाशित करना (ब्लॉकिंग व फिल्टरिंग) आम तरीके हैं जिसे कई देशों ने पिछले दिनों अपनाया है।
इनके अलावा कुछ अन्य तरीके और भी हैं, जैसे- (1) कुछ ऐसे कानून बनाना जिससे कि एक खास प्रकार के कंटेट रोके जा सकें (2) सक्रिय हस्तक्षेप (3) ब्लॉगर व दूसरे इंटरनेट उपयोग करने वालों के प्रति शारीरिक हिंसा और, (4) राजनीतिक रूप से प्रेरित निगरानी” ।
अफसोस की बात है कि भारत भी उन देशों में शामिल है जहां पिछले एक साल में कई ऐसे नये कानून पारित किये गए हैं जिससे इंटरनेट की आजादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरे कुछ अन्य देश जहां ऐसी पाबंदी लग चुकी है, जैसे- अर्जेटिना, चीन, इंडोनेशिया, इरान, मेक्सिको, पाकिस्तान, रूस, सउदी अरब, श्रीलंका, सीरिया, थाइलैण्ड व वियतनाम। हालांकि, यह रिपोर्ट इंटरनेट पर पाबंदी को 3 श्रेणियों में बाँटता है, ब्लॉकरस, नॉन-ब्लॉकरस व नये ब्लॉकरस। और भारत इन तीनों में से किसी भी श्रेणी में नहीं आता।
मैं उम्मीद करता हूँ कि सरकार अपनी क्षमता को बढ़ाने पर गंभीरता पूर्वक विचार करेगी और कर्मचारियों को ऑनलाइन दुनिया, खासकर फेसबुक व दूसरे सोशल मीडिया के साथ-साथ इंटरनेट की काल्पनिक दुनिया के अलग-अलग पहलुओं से अवगत करायेगी। वरना, हम ऐसे ही बराबर टीवी, रेडियों में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवालों के खिलाफ गैर जरूरी कार्रवाई की खबर सुनते रहेंगे।
पिछले साल संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने भी टीवी न्यूज चैनलों पर कहा था कि कानून में कोई कमी नहीं है, सिर्फ पुलिस व सरकारी अफसर उनका सही से पालन नहीं कर रहे हैं।
ओसामा मंजर
डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन
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