सूचना शिक्षित व अशिक्षित, दोनों को संबल देती है। कई लोगों के लिए इंटरनेट सूचनाओं का सबसे बड़ा कूड़ाघर है। फिर भी कई लोगों के लिए यह कूड़ाघर सशक्तीकरण का स्रोत है। सरकारी गलियारों में सूचना व इंटरनेट एक-दूसरे से अनभिज्ञ होने का खेल खेलते हैं, जो असत्य-सा लगता है। वहीं, आरटीआई के तहत अपनी सारी जानकारी वेबसाइट पर डालने के लिए सरकार बाध्य है। लेकिन सरकारी योजनाओं को लागू करने वाले अफसर लोगों को धोखा देकर वेबसाइट पर कामकाज की संतोषप्रद, परंतु झूठी जानकारी देते हैं। मैं मनरेगा की बात कर रहा हूं, जो गरीबों को न्यूनतम सौ दिन रोजगार की गारंटी देती है। पैंतीस साल की रेखा देवी निरक्षर है और दो बच्चों की मां है। वह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रतनौली गांव की है। पिछले महीने पता चला कि उसके नाम पर मनरेगा जॉब कार्ड जारी है और उसे 100 दिन की 16,200 रुपये तनख्वाह दी जा चुकी है। पहले रेखा को लगा कि यह जॉब ऑफर है, लेकिन जब उसे पूरी जानकारी दी गई, तो वह कहती है कि ऐसी योजना के बारे में उसे कुछ भी पता नहीं। रेखा देवी अकेली नहीं है। ऐसे सैकड़ों लोग रतनौली ग्राम परिषद में हैं, जिनका नाम बस कागजों पर है। वे नहीं जानते कि उनके नाम पर कोई और पैसे उठा रहा है।
अगर वहां इंटरनेट नहीं होता, तो ये अनपढ़ मजदूर इस धोखाधड़ी के बारे में नहीं जान पाते। एक इंटरनेट कनेक्शन ने यह मुमकिन किया, जिसे हमलोगों ने हाल ही में शुरू किया था। कुछ महीने पहले रतनौली में हमने सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र (सीआईआरसी) की स्थापना की। इसका उद्देश्य था कि युवाओं के बीच डिजिटल साक्षरता फैलाई जाए व ग्रामीणों को उनसे संबंधित जानकारी मुहैया हो। एक गौशाला में हमने पांच लैपटॉप रखे और उन्हें इंटरनेट से जोड़ा। कुछ युवाओं को इन्हें चलाने की ट्रेनिंग दी गई। हमने उन्हें सूचना सेवक कहा। मनरेगा कार्यकर्ता संजय साहनी ने हमें बताया कि इंटरनेट पर जो सूचनाएं उपलब्ध हैं, उनके बरअक्स गांव के स्तर पर मौजूद सूचनाएं भिन्न हैं। यानी ई-गवर्नेस के एजेंट गलत सूचनाएं उपलब्ध कराते हैं।
कनेक्टिविटी के अभाव में गांव के लोग यह नहीं जानते कि कैसे सही तथ्यों की जांच की जाए। संसाधन व सूचना का अभाव रतनौली और उसके आसपास के गांवों में इतना भयावह है कि हर रात लोग अपने घरों में डिबिया के तले सीआईआरसी द्वारा इंटरनेट से जुटाए गए प्रिंटआउट की चर्चा करते हैं। केंद्र में लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। वे जॉब और अपनी तनख्वाह की स्थिति जानने आ रहे हैं। अब तक 15 पंचायतों के मजदूर जॉब कार्ड के लिए इस केंद्र में आ चुके हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने तकनीक की ताकत को समझकर माना है कि पूरे जिले में पचायत स्तर पर बूथ हों, जहां मनरेगा से जुड़ी जानकारियां प्राप्त हों और इन्हें समुदाय चलाएं।
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