बाईस साल के मल्हार इंदुल्कर कोंकण क्षेत्र में बहने वाली वशिष्टि नदी के तट पर रहते हैं। जब उन्हें यह पता चला कि वहां का औद्योगिक कचरा नदी के जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचा रहा है, तो उन्होंने ऊदबिलाव के संरक्षण में खुद को झोंक दिया। ऊदबिलाव बीमार मछलियों को खा लेता है, जिससे नदी में संक्रमण का बढ़ना थमता है।
इसी तरह, हरियाणा के पलवल के ब्रिजेंद्र प्रजापति मिट्टी के बर्तनों की तकरीबन खत्म हो चुकी कला को नई जान देने में जुटे हैं। उन्होंने उन सभी लोगों को गलत साबित कर दिया, जिन्हें मिट्टी के इस काम में भविष्य नहीं दिखता था। 67 साल के दिनेश गुर्जर भी कभी हथियार व नशीले पदार्थों के डीलर थे, अब उन्हें ऑर्गेनिक खेती में अपना जीवन साकार होता दिख रहा है।
देश में ऐसे कई गुमनाम चेहरे हैं, मगर एक युवा ने तय किया है कि वह ऐसे 52 लोगों को खोजेगा, उन सभी के साथ एक हफ्ता बिताएगा, उनकी कहानी जानेगा और फिर उसे इंटरनेट से पूरी दुनिया में बांचेगा। 28 साल के यह युवा हैं राहुल करणपुरिया। बिजनेस स्कूल को बीच में ही छोड़ने वाले राहुल 52परिंदे डॉट इन नाम से वेबसाइट चलाते हैं, जो ऐसी ही 52 प्रतिभाओं को समर्पित है। उनसे पहली मुलाकात पिछले साल नोएडा में हुई थी। तब वह परंपरागत शिक्षा से बाहर कुछ खोज रहे थे। उनका कहना था कि वह उन कामों से दुनिया को परिचित कराना चाहते हैं, जो इसलिए अचर्चित हैं, क्योकि उन्हें फैशनेबल नहीं समझा गया। पर्यावरण व जल-संरक्षण, खाद्यान्न की बर्बादी रोकने और संस्कृति व विरासत को बचाने में जुटे लोगों की कहानियां वह दुनिया से साझा करना चाहते थे।
करणपुरिया ने दो साल स्वराज यूनिवर्सिटी में बिताए। यह विश्वविद्यालय किसी डिग्री में विश्वास नहीं रखता और न बांटता है। यहां पारंपरिक शिक्षा भी नहीं होती, यह लोगों को खुद को समझने का पूरा मौका देता है और बताता है कि वे दुनिया को बेहतर बनाने में कैसे अपना योगदान दे सकते हैं। उदयपुर और माउंट आबू के बीच करीब सात एकड़ में फैला यह विश्वविद्यालय लोगों को अपने भीतर उद्यमशीलता की क्षमता परखने का भी अवसर देता है।
राहुल 52 हफ्तों में पूरा भारत घूमकर उन 52 लोगों के साथ वक्त बिताना चाहते थे, जिन्होंने ईको-करियर की राह चुनी। हमने उन्हें स्कॉलरशिप दी और कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी दिए। सार्वजनिक परिवहन या पैदल उन्होंने अब तक करीब 7,320 किलोमीटर नाप लिए हैं, और 22 इनोवेटरों की कहानियां उनके पास दर्ज हो चुकी हैं। अपनी यात्रा में उन्होंने कई ऐसे लोगों से मुलाकात की, जो हमें प्रोत्साहित करते हैं। अगली पीढ़ी के लिए इस पृथ्वी को बचाने के ये निजी प्रयास बताते हैं कि अनुभव औपचारिक शिक्षा की तरह ही काफी महत्वपूर्ण है। औपचारिक शिक्षा से बाहर हजारों अवसर हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। बस जरूरत है, तो उन्हें पहचानने की।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)