वैसे तो घुमंतू संपेरा जनजाति और पंचसितारा होटल का कोई रिश्ता तो नहीं, लेकिन 18 जुलाई की शाम एमबिलियंथ अवॉर्ड्स समारोह के दौरान दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में जिसतरह इस जनजाति ने कालबेलिया नृत्य के जरिए शमां बांधा उसे देखने वाले भौंचक्के रह गए।
दरअसल, कालबेलिया, राजस्थान में सपेरा जाति की एक मशहूर नृत्य शैली है। दो महिलाओं वाला नृत्य जिसमें गजब का लोच और गति होती है जो दर्शक को सम्मोहित कर देता है। यह नृत्य दो महिलाओं द्वारा किया जाता है जो बहुत घेरदार काला घाघरा पहनती हैं जिसपर कसीदा होता है, कांच लगे होते हैं और इसी तरह का ओढ़ना और कांचली-कुर्ती होते हैं। राजस्थानी लोक गीतों पर ये फिरकनी कि तरह नाचती हैं तो देखने वाले के मुंह से वाह निकले बिना नहीं रहती। ये संपेरा जनजाति बीन और डफ बजाकर अपनी सुरीली आवाज में लोक गीतों का जादू बिखेरतें हैं। लेकिन, इनकी खुद की जिंदगी इतनी वीरान है कि ये जनजाति आज भी किसी जादू के इंतजार में है।
इस जनजाति के ज्यादातर लोग आज भी सांपों को थामकर, उनका नाच दिखाकर रोजी-रोटी की लड़ाई लड़ते हैं। तो कुछ कालबेलिया नृत्य कर जुटाते हैं दो रोटी लायक थोड़ा-सा पैसा। ये हालात किसी एक राज्य के संपेरे जनजाति की नहीं, पूरे देश में संपेरे खुद का अस्तित्व बचाने की जद्दोज़हद कर रहे हैं। लेकिन वो हुनर ही क्या, जो गरीबी के अंधेरे में गुम हो जाए। यही वज़ह है कि आज गांव कस्बे से लेकर पंचसितारा होटल तक कालबेलिया नृत्य दिख जाता है।
लेकिन, आज के तकनीक युग में इस जनजाति के पास इसके अलावा रोजगार का कोई साधन नहीं है। हालात तो ऐसे हैं कि आज संपेरा बाप का बेटा भी सांप पकड़ने की कला सीखता है, तो वहीं कालबेलिया नृत्य करने वाली मां अपनी बेटी को भी कालबेलिया डांसर बनाना चाहती है। आखिर वो करें भी तो क्या करें, रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए उनके पास कोई और हुनर भी तो नहीं है। यहीं नहीं, मूलभूत सुविधाओं के लिए भी इस जनजाति के लोगों को सरकार का मुंह देखना पड़ता हैं।
अगर, राजस्थान की बात करें तो हम पाते हैं कि बंजारा, कालबेलिया और खौरूआ जाति के लोगों के पास राशन कार्ड और फोटो पहचान पत्र तक नहीं हैं, ऐसे में उन्हें नरेगा जैसी योजनाओं का फायदा तक नहीं मिल पाता। राजस्व रिकॉर्ड में कालबेलिया के नाम के साथ नाथ या जोगी लिखा जाता है। वो गरीबी रेखा से नीचे के वर्ग में भी शामिल नहीं किए जाते। ऐसे हालात में संपेरे अपने सुनहरे दिनों के आने का कभी ना खत्म होने वाला इंतज़ार करने को मजबूर हैं।
ऐसे में आज उनकी पहचान गरीबी, निरक्षरता, खाद्य असुरक्षा, नागरिक सुविधाओं की कमी और बेरोजगारी बन चुकी है। इसे दूर करने के लिए आज जरूरत इस बात की है कि इस जनजाति के लोगों को नई तकनीकी शिक्षा दी जाए। ताकि दुनिया से बाखबर हो सकें और रोजगार के नए-नए अवसर तलाश सकें।
इसी क्रम में कालबेलिया जनजाति के लोगों को सूचना और तकनीकी शिक्षा मुहैया कराने के लिए डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन ने एक सेंटर खोलने का फैसला किया है। कबीलाई संस्कृति से निकलकर कालबेलिया नृत्य की चमक बिखेरने वाले युवक-युवतियां भी यही चाहते हैं कि उनके जीवन में भी थोड़ी-सी रोशनी भर जाए। बस जरूरत सिर्फ बात की है कि उन्हें तकनीक की बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ इंटरनेट की जानकारी मुहैया कराई जाए, ताकि दुनिया भर से जानकारी वो खुद इंटरनेट के जरिए जुटा सकें। औऱ फिर एक दिन ऐसा आएगा जब यहीं घुमक्कड़, सपेरा कालबेलिया जनजाति के लोगों की ऊंगलियां कंप्यूटर की बोर्ड़ पर थिरकती नजर आएंगी औऱ उनके पास रोजगार के ढेर सारे अवसर भी मौजूद होंगे।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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