अबतक लोगों को किसी चीज की खबर जानने के लिए टीवी, पत्रिका, अखबार, रेडियो या इंटरनेट का सहारा लेना पड़ता था। लेकिन, अब ऐसा नहीं है, समय के साथ-साथ अब धीरे-धीरे सब कुछ बदलने लगा है। सूचना, समाचार हो या विज्ञापन सबकी खबर अब मोबाइल देने लगा है।
चूंकि इन दिनों मोबाइल हर किसी की पहुंच में है, इसलिए माना जाता है कि इस पर दिए गए खबर या विज्ञापनों पर गौर जरूर किया जाएगा। यही वजह है कि विज्ञापन की दुनिया में अब मोबाइल एक सशक्त माध्यम के तौर पर उभर कर सामने आ रहा है। एम बिलियंथ अवॉर्ड समारोह इसका गवाह है, जहां दुनिया के करीब 8 देशों से लोग शामिल होते हैं। ऐसे लोग जो मोबाइल के इस्तेमाल से समाज में बदलाव लाते हैं। इनमें से कुछ नाम हैं ऑल इवेंट्स डॉट इन, हॉर्नबिल फेस्टिबल डॉट कॉम, रोड लेस ट्रेवल, जिन्होंने इंटरनेट और मोबाइल टेक्नॉलॉजी को एक सशक्त माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया।
2011 में शुरू की गई ऑल इवेंट्स डॉट इन एक ऐसा वेबपोर्टल है जो दिल्ली की तमाम कार्यक्रमों की जानकारी देता है। यहीं नहीं, ऑल इवेंट्स डॉट इन पर्यटकों के लिए हर तरह की जानकारी भी मुहैया कराता है। इसी तरह नागालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिबल को दुनिया के 85 देशों में पहुंचाने का श्रेय हॉर्नबिल फेस्टिबल डॉट कॉम को जाता है। हॉर्नबिल फेस्टिबल डॉट कॉम की वजह से ही आज नागालैंड के हॉर्नबिल फेस्टिबल को अबतक 85 देशों के पर्यटक देखने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। हॉर्नबिल फेस्टिबल डॉट कॉम वेबसाइट के जरिए इस अनोखी संस्कृति की झलक दुनिया के हर कोने में बैठे लोगों तक पहुंचाता है। इसी तरह पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रोडलेस ट्रेवल्ड भी ऐसी जगहों की खोजखबर देता है जिसके बारे में कोई नहीं जानता। यानी ऐसा पर्यटन स्थल जो अनदेखी की वजह से गुमनामी चादर ओढ़े हुए है। ऐसे और भी कई मिसाल हैं जिनकी कोशिशों से ग्रामीण पर्यटन के साथ-साथ गांवों में भी विकास दिखने लगा है।
हालांकि, वक्त के साथ हर क्षेत्र में बदलाव हो रहा है और ऐसे में हमारे गावों की बदलती तस्वीर भी एक मिसाल पेश करती है। शहरों की भाग-दौड़ वाली ज़िंदगी से ऊब चुके लोग अब शांति के दो पल गुजारने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की ओर रुख करने लगे हैं। जिसकी वजह से आज ग्रामीण पर्यटन भी उभर कर सामने आने लगा है। लेकिन, ये नजारा अभी सिर्फ शहरों से सटे गांवों का है, जहां शिक्षा,स्वास्थ्य,हस्तशिल्प,कला और दैनिक जरुरतों को मुहैया करवाने का जिम्मा ग्राम पंचायतें बखूबी निभा रही हैं। इसी तरह देश में कई और ऐसे दूरदराज के गांव हैं जिसकी खास संस्कृति औऱ हस्तशिल्प के नमूने बेमिसाल हैं, लेकिन जानकारी के आभाव में पर्यटक वहां तक नहीं पहुंच पाते।
किसी भी गांव की पहचान उसकी संस्कृति और वहां के हस्तशिल्प से होती है, जिसके जरिए उस गांव में ‘ग्रामीण पर्यटन’ को भी बढ़ावा मिलता है। लेकिन, ये सब तब तक बेकार जबतक इसकी जानकारी दूसरों तक नहीं पहुंचती है। चाहे गुजरात के गांव हों या हिमाचल प्रदेश के या फिर राजस्थान, केरल, मध्यप्रदेश और सिक्किम के इन सभी राज्यों के कुछ गांव पर्यटकों को लुभाने के लिए अलग-अलग तरह के विज्ञापन का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें एक मोबाइल भी मुख्य माध्यम है।
इसी मकसद से कुछ साल पहले देश भर के करीब 36 दूरदराज गांवों को चुना गया था, जहां आपार संभावनाएं है। जिसमें प्रमुख थे- नामथांग और सामथर। सिक्किम में बौद्ध परंपराओं की झांकी के लिए मशहूर नामथांग रांगपो टाउन के पास है। वहीं सामथर गांव, पश्चिम बंगाल में कलिमपोंग से 80 किमी दूर है जो भूटिया,लेपचा समुदायों की खास संस्कृति के लिए जाना जाता है।
इसी तरह मध्यप्रदेश में ऐतिहासिक नगरी चंदेरी से सटे गांव प्रानपुर भी ग्रामीण पर्यटन का अनोखा उदाहरण पेश करता है। वैसे तो प्रानपुर के ज्यादातर घरों में चंदेरी साड़ियों का काम होता है,जहां ताने-बाने के बीच लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी साड़ियां बनाने में सिमटी रहती है। इसकी सिर्फ और सिर्फ एक वजह है विज्ञापन की कमी।
हालांकि, मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम ने कुछ साल पहले रूरल टूरिज्म का कांसेप्ट तैयार भी किया था,ताकि पर्यटक आकर ग्रामीण इलाकों की कला-संस्कृति, मेले, भेष-भूषा, रहन-सहन, खानपान, हैंडीक्रॉफ्ट उत्पादों और वहां के हैरिटेज से रूबरू हो सकें। जिसके लिए राज्य सरकार ने ग्वालियर-चंबल संभाग में कुछ जगहों का चुनाव कर उन्हें विकसित करने के लिए करोड़ों का फंड भी जारी किया था, जिसमें चंदेरी व प्रानपुर को विकसित करने की योजना थी। लेकिन, उसका कोई फायदा दिखाई नहीं दिया। आज भी ग्वालियर-चंबल रेंज में ऐसे कई ग्रामीण इलाके हैं, जो पुरातत्व व ऐतिहासिक रूप से खास हैं, जिसे विकसित करने के लिए सरकार ने अब तक कोई कदम तक नहीं उठाया है।
आज अगर हम चंदेरी को मिसाल के तौर पर देखें, तो हम पाते हैं कि वहां बुनाई का काम पुराने समय से ही स्थानीय लोगों को रोजगार दिलाता है और साथ ही पर्यटकों से भी कमाई हो जाती है। डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन की मदद से आज वहीं साड़ियों की प्रिंटिंग डिजाइन कंप्यूटर से तैयार होने लगी हैं। और साथ ही वहां की एतिहासिक इमारतों की जानकारी भी ऑनलाइन औऱ मोबाइल कर दी गई है, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक इसकी जानकारी ले सकें।
ऐसे में हमें जरूरत है चंदेरी से सबक लेने की और उसे एक मिसाल बनाने की। आज के तकनीक और इंटरनेट युग में प्रान जैसे उपेक्षित गांवों की पहचान कर उनकी संस्कृति, कला, हस्तशिल्प और एतिहासिक स्थलों की जानकारी ऑनलाइन करने की जरूरत है, तभी ग्रामीण पर्यटक को बढ़ावा मिलेगा। इससे न सिर्फ गांवों का विकास होगा, बल्कि ग्रामीणों को भी रोजगार मिलेगा।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
Click here to read this Column at gaonconnection.com