जहां 9 लाख 30 हजार मतदान केंद्रों पर चुनाव संबंधित जरूरी गतिविधियों की जानकारी वॉट्सएप, फेसबुक के जरिए मिलेगी, वहीं वेबसाइट के जरिए हर बूथ, हर उम्मीदवार का पूरा व्यौरा भी मौजूद है। इस बार मतदाताओं को उनके मताधिकार का इस्तेमाल के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के साथ-साथ पहली बार फोटो वोटिंग स्लिप की भी सुविधा मिलेगी। हालांकि, चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के मुताबिक देश के 98.64 फीसदी मतदाताओं के पास पहचान पत्र मौजूद है।
इसके अलावा मतदान दलों को ले जाने वाली बसों को जीपीएस से लैस की गई है, साथ ही संवेदनशील मतदान केन्द्रों को आनलाइन कर दिया गया है, ताकि मतदान के दिन वहां से वेबकास्टिंग की जा सकेगी। इससे चुनाव आयोग नियंत्रण कक्ष में बैठकर मतदान केन्द्र में मतदान की गतिविधियों पर आॅनलाइन नजर रख सकेगा।
इसी तरह उम्मीदवारों भी इस बार लोकसभा चुनाव में प्रचार की जंग हाइटेक रथों से लड़ रहे हैं। दूर-दराज क्षेत्र और गांवों में बिजली दर्शन भले ही न हो, लेकिन इन धूल भरे रास्तों पर बड़े एलईडी टीवी व वीडियो स्क्रीन के जरिए दिग्गजों के संदेश लोगों तक पहुंच रहे हैं। हाईटेक प्रचार रथों में लगे पावर बैकअप जनरेटर व इन्वर्टरों से विशेष छोटी फिल्मों, वरिष्ठ नेताओं के भाषण और उन पर बनाए गए गीतों को दिखाया व सुनाया जा रहा है।
चुनावी प्रचार में तकनीकी का इस्तेमाल अमेरिकन अंदाज में कर रही मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने अन्य राज्यों की तरह सिर्फ यूपी में अबतक 401 ‘मोदी रथ’ प्रचार में उतार चुकी हैं। जबकि पड़ोसी राज्य बिहार में 500 और मध्यप्रदेश में 543 रथ चुनाव प्रचार में जुटे है। इन रथों में व्हीकल ट्रैकिंग डिवायस मौजूद है। जो इंटरनेट की मदद से बताएगा कि कौन सा रथ किस गांव में खड़ा है, चल रहा है या रुका है, इसकी पूरी जानकारी कंट्रोल रूम में पहुंचती रहती है। रथ से संबंधित जानकारी गूगल मैप से रनिंग डिवायस के जरिए भी मिलती रहती है।
ऐसे हाइटेक रथों की होड़ में बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है। पिछड़ी जातियों में विकास का संदेश देने और सरकार की उपलब्धियां बताने के लिए कई हाईटेक रथ महीनों से क्षेत्र में दौड़ लगा रहे हैं। सूचना और तकनीक का ही कमाल है कि साल भर पुरानी आम आदमी पार्टी को लोगों के बीच अच्छी पकड़ बना चुकी है। देश भर में 9 चरणों में 7 अप्रैल से 12 मई तक होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए हर उम्मीदवार, हर पार्टी अपनी हैसियत के मुताबिक खुद को हाई-टेक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
चलिए, चुनाव के बहाने ही सही, इस बार गांव के लोगों को तो कम से कम नई तकनीक से रूबरू होने का मौका मिला है। देर से ही सही, मगर इंटरनेट और तकनीक का गांवों तक पहुंचना ही एक शुभ संकेत है। वो दिन दूर नहीं, जब गांव का हर शख्स इंटरनेट औऱ तकनीक से लैस होकर खुद की तकदीर संवारेगा। यकीनन सूचना और तकनीक एक दिन गांवों की तरक्की और ग्रामीणों के सशक्तीकरण के लिए मुख्य हथियार साबित होगा।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।