देश की राजधानी या यू कहे की शहरो में बैठ कर डिजिटल इंडिया, केशलेश इंडिया की कल्पना करना या सपना देखना माध्यम वर्ग और निति निर्माताओ के लिए सुखद अनुभव एवं सपना हो सकता है लेकिन दरअसल दूर दराज़ ग्रामीण इलाके में अभी इन गढ़े हुए नारो का कहि अता पता आज की तारीख में देखने को नही मिलता।
नोटेबन्दी के तकरीबन 18 माह के बाद भी अगर ग्रामीण इलाकों के एटीएम कैशलेस है तोह आप और हम खुद कैशलेस इंडिया का अंदाज़ा लगा सकते है। बिहार के बेतिया, जमुई और दरभंगा जिले के लगभग 21 एटीएम का चकर लगाने के बाद भी अगर कैश हाथ न लगे तोह आप और रोज़ नए नए योजना बनाने वाले मेरे हतसा को समझ सकते है। एटीएम में कैश नही है और होटल मालिक कार्ड से या यू कहिये ऑनलाइन पेमेंट लेने को तैयार नही है . “सरजी, इ दिल्ली ना ह इहवां नगदी चली|” अंत: बड़ी जद्दोजेहद और होटल मैनेजर से बहस के बाद कार्ड से भुगतान करके वापस वही लौट रहे है जहा डिजिटल और कैशलेस इंडिया का अपना अलग ही दुनिया और अनुभूति है।