आजकल अकसर हमें कहीं न कहीं विज्ञान और तकनीक से इस्लाम का टकराव देखने को मिल जाता है। दूर-दराज गांवों में कई बार मुस्लिम समुदाय विज्ञान और तकनीक को गैर-इस्लामी तक करार देते हैं। ऐसे में कई जगहों पर ऐसी सोच भी बनने लगी है कि इस्लाम विज्ञान और तकनीक को तरक्की का जरिया नहीं बनाया जा सकता। दरअसल, ऐसा उन मुसलमानों की वजह से हुआ है जो शरीयत को बिना समझे शरीयत के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं। बिना इस्लाम को जाने किसी चीज़ को गैर-इस्लामी करार दे देते हैं। अफसोस ये है कि ऐसे लोगों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रही है,और इनमें से ज्यादातर लोग या तो अशिक्षित हैं या फिर इस्लाम की अच्छी समझ नहीं है।
हमें मालूम होना चाहिए कि किसी भी काम को करने का अगर साधन बदल जाए तो वह काम या साधन गैर इस्लामी कतई नहीं होता। इस्लाम ज़माने के आगे बढ़ने के साथ तकनीक और साधनों के बदलाव को स्वीकार करता रहा है। क्योंकि विज्ञान और तकनीक से गुरेज करके तरक्की मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। अफसोस कि ज्यादातर मदरसों में भी ये चीज़ें नहीं सिखाईं पढ़ाईं जा रहीं। आज ज्यादातर मदरसों या अकलियत शिक्षण संस्थानों का अप्रोच ठीक नहीं है। उनका आधुनिकता जैसी चीज से कोई लेना-देना नहीं है, जिसका नतीजा है कि आज मदरसे या अकलियत शिक्षण संस्थानों से निकले बच्चे अमूमन जिंदगी की दौड़ में पीछे रह जाते हैं। इसे पटरी पर लाने के लिए इन शिक्षण संस्थानों को अपनी अप्रोच पूरी तरह बदलनी होगी। इन मदरसों और अकलियत शिक्षण संस्थानों में एसी शिक्षा की सुविधा होनी चाहिए जहां बच्चे दीनी तालीम के साथ-साथ दुनिया की नई तालीम में हासिल कर सकें। वहां कंप्यूटर, इंटरनेट के साथ-साथ ऐसी तकनीकी शिक्षा मिल सके, जिससे वो देश के किसी कोने में वो एक कामयाब इंसान की तरह जिंदगी बसर कर सकें।
हालांकि, इस कमी को दूर करने और एक नए समाज का निर्माण करने के लिए 1860 में दारुल उलूम देवबंद और 1875 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी जैसी शिक्षण संस्थाओं की नींव रखी गई थी, जो आज इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा देने के लिए प्रमुख केंद्रों में से एक है। लेकिन, ये भी घर-घर विज्ञान और तकनीक को पहुंचाने में सफल नहीं हो पाए हैं। जबकि आजाद भारत में तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने इसकी अहमीयत का बखूबी एहसास था।
इसी सिलसिले में उन्होंने अल्पसंख्यकों के भविष्य को देखते हुए जब अबुल कलाम आजाद ने शिक्षा के महत्व पर जोर दिया तो उस समय केशव बलिराम हेडगेवार और उनके सहयोगियों ने मौलाना आजाद की दूरदृष्टि का मजाक उड़ाते हुए उन्हें समय का ज्ञान न होने के साथ पक्षपाती और अदूरदर्शी करार दिया था।
आलोचनाओं की परवाह ना करते हुए मौलाना ने अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा को ही सबसे बेहतर बताने की वकालत जारी रखी और उन्होंने खुद कोआजाद भारत के अल्पसंख्यकों के कल्याण कार्य में लगा दिया। बाद में, 1988 में उनकी जन्म शताब्दी के अवसर मौके पर जब ‘मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन’ स्थापित किया गया तो इसके कोशिशों ने कुछ ही सालों के भीतर हेडगेवार को पूरी तरह से गलत साबित कर दिया।
ये कारवां यही नही रुका, बल्कि यूपीए सरकार ने मौलाना आजाद के सुझावों पर अमल करते हुए अल्पसंख्यक बच्चों के आर्थिक सशक्तिकरण और बेहतर भविष्य के लिए भारत के 30 करोड़ योग्य अल्पसंख्यकों – मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी में भरोसा बढ़ाने के लिये ढेरों कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू कर दी। जिसकी एक आखिरी कोशिश और ताजा मिसाल है जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक का दर्जा देना और हाल ही में नेशनल वक्फ डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड की स्थापना।
उम्मीद है कि इन कोशिशों से अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी सभी को फायदा मिलेगा। लेकिन, पिछली गलतियों को न दोहराते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को बेहद संजीदगी से इस योजनाओं को जरुरतमंदों तक पहुंचाना होगा, जो अब तक नहीं हो पाया। इसके लिए एक खास रणनीति के साथ-साथ ऐसे गैर सरकारी संस्थाओं और समाज सेवियों को जिम्मेदारी देनी होगी, जो ऐसे कामों को बखूबी अंजाम दे रहे हैं।
अच्छी बात यह है कि आज का मुसलमान युवा पिछली पीढ़ियों से ज़्यादा समझदार है। उन्हें समझ में आने लगा है कि अगर वो पुराने ख्याल को छोड़, नई तकनीक को नहीं अपनाएंगे, तब तक कुछ हासिल नहीं होने वाला है। यही वजह है कि आज के मुस्लिम युवा मुख्यधारा में शामिल होने के लिए मेहनत कर रहे हैं और कुछ हद तक क़ामयाब भी हो रहे हैं।बस जरूरत है उन्हें एक नई दिशा देने क, ताकि वो अपनी योग्यता के मुताबिक सफलता की नई ऊंचाई को छू सकें।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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