यह लेख पहले हिंदुस्तान अखबार में छपा थाI
हरेक देश में प्रतिभाओं के विकास और उसकी आर्थिक तरक्की की क्षमताओं के आकलन के लिए वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने एक मानक तंत्र ‘ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स’ (एचसीआर्ई) अपनाया है। साल 2016 की एचसीआई के मुताबिक, 130 देशों की सूची में भारत 105वें नंबर पर था, जबकि श्रीलंका 50वें, चीन 71वें, भूटान 91वें पायदान पर थे, यहां तक कि बांग्लादेश भी हमसे एक पायदान ऊपर था। पड़ोसी मुल्कों में नेपाल और पाकिस्तान हमसे पीछे थे।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार, यह सूची इस आधार पर तैयार की जाती है कि ‘किसी देश में 15 साल से कम उम्र से लेकर 65 साल से अधिक आयु तक के पांच खास उम्र समूहों में शिक्षा, कौशल और रोजगार के क्या स्तर हैं। इसका मकसद मानव पूंजी में एक देश के पूर्व व वर्तमान निवेशों के परिणाम का आकलन करना है और यह देखना है कि किसी देश की मौजूदा प्रतिभा-क्षमता क्या है और भविष्य में कितनी और बढ़ेगी?’
‘ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स’ और उसमें भारत की स्थिति देखकर मुझे आश्चर्य हुआ कि सरकार जो रकम खर्च करती है, वह कितना मूल्यवान, चिर-स्थायी और प्रभावी हो सकती है। देश में 14 लाख से ज्यादा स्कूल हैं, जो भविष्य के कार्यबल तैयार कर रहे हैं और देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश के सरकारी स्कूलों का हर एक शिक्षक 26 छात्रों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी निभाता है।
बावजूद इसके करीब 40 फीसदी बच्चे अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने से पहले ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। यह शिक्षकों की अपनी जिम्मेदारी के प्रति प्रतिबद्धता व उनकी स्तरीयता का ही एक संकेत है। इसी तरह, देश भर में आठ लाख, 60 हजार स्वास्थ्यकर्मी हैं और 18 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं, जिन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक प्रसव अस्पताल में हो, मां बनने वाली स्त्री पोषक आहार ले, नवजात शिशु को समय पर व सभी टीके लगाए जाएं आदि। लेकिन यदि हम प्रसव के दौरान होने वाली मौतों (प्रति एक लाख पर 174) व शिशु मृत्यु दर (हर 1,000 पर 48) को देखें, तो उनके मूल्य और कौशल पर हमारे सामने सवाल खड़े हो जाते हैं।
इसमें कोई दोराय नहीं कि मनरेगा ने उन लोगों को रोजगार मुहैया कराने में शानदार भूमिका निभाई है, जिनको काम की सख्त जरूरत है। इससे पलायन पर भी काफी हद तक रोक लगी है। लेकिन इसके तहत खर्च होने वाली रकम कोई ‘पूंजी’ तैयार नहीं कर रही। मनरेगा में ज्यादातर काम 100 दिन की मजदूरी वाले हैं, तो ऐसे में सरकार को सोचना चाहिए कि ये मजदूर क्या भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण पूंजी बन सकते हैं? इन्हें कंप्यूटर चलाने का प्रशिक्षण दिया जा सकता है, ताकि वे फोटोकॉपी निकालने, प्रिंट लेने और स्कैन करने जैसे काम कर सकें।