भारत ‘नॉलेज सोसायटी‘ बनने की तरफ बढ़ रहा है। इसी कड़ी में अब एजुकेशन रिफॉर्म की बात भी होने लगी है। ये हमारे लिए अच्छे संकेत तो जरूर हैं, लेकिन, भारत जैसे ग्लोबल कंट्री के युवाओं को ग्लोबल सिटीजन बनाने के लिए पहले जरूरी है कि सही शिक्षा के साथ साथ उन्हें मुख्यधारा से भी जोड़ा जाए।
भारत में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत देश में अबतक करीब तीन लाख से ज्यादा स्कूल खोले जा चुके हैं। लेकिन, यहां भी बुनयादी शिक्षा की सुविधाएं नदारद हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम लागू होने के तीन साल बाद भी भारत के 95 फीसदी से ज्यादा स्कूल बुनियादी सुविधाओं के लिए आरटीई के मानकों का अनुपालन नहीं करते। जबकि 14 लाख स्कूल और करीब 70 लाख शिक्षक वाले देश में 85 फीसदी से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जहां क्ंप्यूटर नहीं है। अगर किसी स्कूल में शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं हैं भी, तो पढ़ने के लिए बच्चे नहीं हैं। एक आंकड़े के मुताबिक देश के 28 राज्यों में पढ़ाई छोड़ने वाले या स्कूल न जाने वाले बच्चों की तादाद उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में सबसे ज्यादा 6.4 फीसदी बच्चे (6 से 14 साल तक) स्कूल नहीं जाते। वहीं मेघालय में इस उम्र के 5.5 फीसदी बच्चों ने स्कूल का मुंह भी नहीं देखा। झारखंड और असम में इस उम्र के 4.4 फीसदी बच्चों का स्कूल में एडमिशन नहीं हो सका, तो बिहार में 6 से 14 साल के स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या 3.7 फीसदी है। इसके अलावा केरल (0.2 फीसदी), तमिलनाडु और त्रिपुरा (0.6 फीसदी) और हिमाचल प्रदेश (1 फीसदी) बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल नहीं जाते।
इसी गंभीर मुद्दे पर पिछले महीने, 19 फरवरी को दिल्ली के ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ में सीएससी (कॉमन सर्विस सेंटर) पर एक वर्कशॉप हुआ। सीएससी, कॉमन सर्विस सेंटर यानी साझा सेवा केन्द्र, भारत सरकार की एक ऐसी योजना है जिसके अंतर्गत देशभर के 6 लाख गाँवों में 1 लाख साझा सेवा केन्द्र की स्थापना की जा चुकी है, जिसमें 95 हजार सुचारु रुप से काम कर रहे हैं, ऐसा बताया जाता है।
सीएससी वर्कशॉप में मौजूद अलग-अलग क्षेत्र से आए सभी प्रतिनिधि इस बात पर जोर देते दिखाई दिए कि कैसे शिक्षा औऱ ज्ञान के जरिए इंफोर्मेशन सोसायटी यानी सूचना संपन्न सामज का निर्माण किया जा सके। वर्कशॉप में बहस के बीच हर प्रतिनिधि अपने-अपने इलाके या कार्य क्षेत्र के मुताबिक अपनी-अपनी बातें रखीं।
अगर मैं अपनी बात करूं, तो पिछले एक दशक से सूचना तकनीक के क्षेत्र में सक्रीय होने के नाते मैंने भी कई गांवों में स्कूलों, पंचायतों और अन्य सुविधाओं को करीब से देखा और समझा है। जिससे मुझे एहसास हुआ कि गांव के हर शख्स को मुख्य धारा से जोड़ना और वहां आर्थिक विकास करना सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे हालात से निपटने में सीएससी यानी साझा सेवा केन्द्र एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
सरकारी, निजी व सामाजिक क्षेत्रों के द्वारा दी जाने वाली जन सेवाओं को इकट्ठा कर साझा सेवा केन्द्र के रूप में विकसित करने के लिए 2004 में सीएससी योजना की शुरुआत हुई थी। जहां आईटी-नॉन आईटी सर्विसेज के जरिए देश के दूर दराज गांवों में लोगों का सामाजिक व आर्थिक विकास किया जा सके।
हालांकि, पिछले दो दशकों में भारत ने जिस तरह अपनी पहचान ग्लोबल इकॉनमी के रूप में कायम की है, उससे भारत में रोजगार के अवसरों की तुलना दुनिया भर में हो रही है। इन हालात ने भारतवासियों को ‘ग्लोबल सिटीजन’ भी बना दिया है। यह भी माना जाने लगा है कि भारत के पास सबसे ज्यादा युवाओं के अलावा बेहतर भौगोलिक स्थिति का लाभ भी है।
लेकिन, इसके बावजूद भारत का सामाजिक और आर्थिक विकास संतोषजनक नहीं हो पाया। जिससे साबित होता है कि शिक्षा का इस्तेमाल ठीक ढंग से नहीं हुआ या ऐसी शिक्षा नहीं दी गई जिससे समाज का चहुमुखी विकास हो सके। अगर हमें समाज में बदलाव चाहिए तो टेक्नोलॉजी को आम आदमी तक पहुंचाना होगा। हमें भविष्य के लिए केवल इंजीनियर ही नहीं, सोशल साइंटिस्ट भी चाहिए जो विकास को नीचे तक पहुंचा सके।
मतलब साफ है कि नॉलेज सोसायटी के लिए शिक्षा की जितनी जरूरत लर्निंग और असेसमेंट के लिए है, उतनी ही जरूरत पर्सनल डिवेलपमेंट में भी है। इसे पूरा करने के लिए एजुकेशन सिस्टम में इन्फॉर्मेशन और कम्यूनिकेशन टेक्नॉलजी का भी ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होना चाहिए, जिससे ई-लर्निंग और ई-असेसमेंट का चलन शुरू हो। हर स्कूल को इंटरनेट से जोड़कर टीचर्स की इफेक्टिव ट्रेनिंग पर भी ध्यान देना होगा, ताकि वो छात्रों को क्वालिटी ट्रेनिंग दे सकें। ऐसा करने पर न कि सिर्फ एक नॉलेज सोसायटी का निर्माण होगा, बल्कि इसके जरिए समाज का हर आदमी किसी भी विकास, निर्णय प्रकिया में बराबर का भागीदार होगा। और इस कड़ी में 95 हजार सक्रीय सीएससी यानी साझा सेवा केंद्र एक अहम रोल अदा कर सकते हैं।
ओसामा मंजर
लेखक- डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य हैं।
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