अगर कोई बच्चा पूंजीपति या उच्च जाति के परिवार में पैदा हो जाए तो वो पूंजीपति, राजनेता या फिर पत्रकार बन जाता है, राजस्थान, पंजाब में गरीब परिवार में पैदा होता है तो फौज में जाता है और वही एक बच्चा जब झारखंड, छत्तीसगढ़ के आदिवासी के घर में पैदा होता है तो वो जंगलों की खाक छानता है या फिर नौकरी की तलाश में जीवन भर भटकता रहता है और आखिर में थक-हारकर प्राकृतिक संपदा का संरक्षक बन जाता है! आखिर क्यों? कभी आपने इसके पीछे छिपे कारणों को जानने की कोशिश की है?
दरअसल, आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत होने के बाद देश में कहीं भी उद्योग लगाने का सिलसिला शुरू हुआ। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हों या फिर देश के कार्पोरेट उद्योग स्थापित करने ऐसी जगहों का चुनाव किया जो खनिज संसाधन के करीब थे। यह इत्तफाक ही है कि ज्यादातर खनिज भंडार आदिवासियों के रिहाईसी इलाकों में ही है। इसलिए जमीन अधिग्रहण करने का सिलसिला शुरू हुआ। उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ऐसे नियम कानून बने जिससे आदिवासियों का जल-जंगल-जमीन पर हक कमजोर होता चला गया। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बंगाल से लेकर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से लेकर कर्नाटक तक आदिवासी अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष करने को मजबूर हैं। लेकिन, आज हम आपको इसी तरह की एक ऐसी हकीकत से रूबरू कराएंगे जो इस बात की पुष्टि करता है। यहीं नही. ये आदिवासी अपनी आवाज बुलंद करने के लिए मोबाइल का बखूबी इस्तेमाल करने लगे हैं। ‘सीजी नेट स्वरा’ की आईवीआर प्रणाली आदिवासी बहुल इलाके में काफी लोकप्रिय है।
मध्यप्रदेश के रीवा जिले का एक छोटा सा गांव छपारिहा, जो विकास की मुख्यधारा से न सिर्फ कटा है बल्कि वहां प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन भी जोरों पर है। वहां आदिवासी परिवार के बच्चे इलाके की संपदा को बचाने के लिए बखूबी पत्रकार की भूमिका निभा रहे हैं, जबकि स्थानीय उच्च जाति के लोग या यूं कहे कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ठेकेदार तथाकथित प्राकृतिक संपदा के दुश्मनबन गए हैं।
इसी तरह का एक वाक्या है रिवा जिले के छपारिहा गांव की, जहां आदिवासियों का दावा है कि उनलोगों ने करीब 3 हजार पौधे लगाए और कुछ ही दिन बाद उच्च जाति वाले प्राकृतिक संपदा के दुश्मनों ने उसे उखाड़ फेंका। ‘सीजी नेट स्वरा’ द्वारा इस खबर के प्रकाशित होते हीं सारे अधिकारी हरकत में आ गए। ‘सीजी नेट स्वरा’ की हर कोशिश आदिवासी समुदाय को आवाज बुलंद करने में काफी मददगार साबित हो रही है।
दरअसल, ‘सीजीनेट स्वरा’ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में एक ऐसा सफल मोबाइल न्यूज सर्विस है, जो लोगों को फोन पर न्यूज रिकॉर्ड व ब्रॉडकास्ट करने की सुविधा देता है। इसे फरवरी 2011 में लांच किया गया था और तबसे लेकर आज तक ये इस तरह के जमीन से जुड़े तकरीबन हजारों ग्रामीण और आदिवासी युवा रिपोर्टर अपने साथ जोड़ चुकी है। इन युवा रिपोर्टरों में सफाईकर्मी, किसान, छात्र और कुछ एक्टिविस्ट भी शामिल हैं।
इसी तरह की कुछ ग्रामीण और आदिवासी रिपोर्ट्स ने लोगों को हिलाकर रख दिया है, क्योंकि ये अनजान रिपोर्टर उन स्वास्थ्य केंद्रों के बारे में रिपोर्ट देते रहते हैं, जिनमें कभी कोई दवाई नहीं रहती, ऐसी आंगनवाड़ियों के बारे में बताते हैं, जिन्हें कुपोषित बच्चों को भोजन बांटना चाहिए, लेकिन उनके यहां कभी कोई बच्चा नहीं आता और फिर भी सरकार से इस मद में खर्च होने वाला पूरा पैसा लेती हैं।
आज जरूरत ऐसी ही जागरुकता की है ताकि आदिवासी समाज की विशेषताओं और आधुनिक तकनीक को अपनाए। वैसे भी प्राचीन काल से ही आदिवासियों की सबसे बड़ी कमजोरी समाज का शिक्षित न होना और जागरूकता और एकता का अभाव रहा है। लेकिन, ‘सीजीनेट स्वरा’ की पहल ने आदिवासी समाज को नई ताकत प्रदान की है, जिसकी मदद से वो आज न सिर्फ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं बल्कि उनके इलाके में चल रहे गोरखधंधे का भी पर्दापाश कर रहे हैं।
इसी तरह के सराहनीय सामाजिक कार्यों के लिए इस साल ‘सीजीनेट स्वरा’ एमबिलियंथ अवॉर्ड समारोह में वोडाफोन मोबाइल फॉर गुड के सौजन्य से डिजिटल एंम्पावरमेंट फाउंडेशन द्वारा चुने गए चार विजेताओं में से एक था। दरअसल, ये अवॉर्ड उन लोगों या संस्था को दिए जाते हैं जिन्होने किसी सामाजिक कार्य में मोबाइल का साकारात्मक इस्तेमाल किया हो। हर साल ‘वोडाफोन मोबाइल फॉर गुड’ एमबिलियंथ अवॉर्ड समारोह के जरिए 8 देशों में से ऐसे ही चार विजेताओं का चुनाव होता है जिन्हें 10 लाख रुपए की इनामी राशि भी प्रदान की जाती है। इस साल ‘सीजीनेट स्वरा’ को भी आदिवासी बहुल इलाकों में सराहनीय कार्य के लिए चुना गया, और इस तरह ये 10 लाख की इनामी राशि का भी हकदार बन गया। उम्मीद है कि ‘सीजीनेट स्वरा’ इस राशि का इस्तेमाल आदिवासियों के उत्थान और रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए करेगा, ताकि विकास की मुख्यधारा से कटे आदिवासी समाज खुद को देश की मुख्यधारा से जोड़ सकें।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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