खूंखार हुआ ‘हेलन’, खतरे में विशाखापट्टनम…..ये वो लाइन थे जो पिछले साल नवंबर में हर टेलीविजन चैनल, अखबार में छाए हुए थे। क्या आप जानते हैं इस खबर का कितना असर हुआ था? इस खबर का असर इस कदर हुआ कि समुद्री तट पर रहने वाली पूरी आबादी घर बार छो़ड़ किसी सुरक्षित ठिकाने पर चली गई थी। हफ्तों दर बदर होने की वजह से उनके घर की चूल्हा बंद हो गया था। मछली पकड़ने से रोजाना जो कुछ भी कमाई हो जाती थी, इस सनसनी खबर ने उस पर पाबंदी लगा दी थी। और आखिर में खबर ये आई कि ‘हेलेन‘ तूफान तेजी से अपनी दिशा बदल रहा है इसकी दिशा आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले की तरफ हो गई है।<p
दरअसल, इस वाक्ये को आपके सामने रखने का एक ही मकसद था कि जानकारी के आभाव में कैसे दूरदराज गांवों के लोगों को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। समुद्री तट पर रहने वाली आबादी खुद इस काबिल न हो कि वो बदलते मौसम की जानकारी खुद प्राप्त कर सके या ढूंढ़ सके तो उन्हें ऐसी परेशानी का सामना हमेशा करना पड़ेगा। इससे बचने का सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्ता है खुद को सूचना और तकनीक से जोड़ना। इससे समुद्री तट पर रहने वाले मछुआरे न सिर्फ मौसम का अनुमान खुद जान सकेंगे, बल्कि समय रहते अपने खाने-पीने का भी इंतजाम कर सकेंगे और ये मुमकिन है इंटरनेट और कंप्यूटर के जरिए।
इसी मकसद को पूरा करने के लिए दिसंबर 2012 में विशाखापट्टनम जिले के मुथयलम्मापालम गांव में इंटेल और डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से हर परिवार के एक सदस्य को कंप्यूटर और इंटरनेट की शिक्षा देने की मुहीम शुरू की थी। जिसे नेशनल डिजिटल लिटरेसी मिशन का नाम दिया गया था, जिसका जिक्र हमने अपने जून 2013 में एक लेख के जरिए किया था। मुथयलम्मापालम एक ऐसा गांव है 450 परिवार रहते हैं, जहां 99 फीसदी लोगों की जिंदगी समुद्र में मछली पकड़ने और बेचने से चलती है। हालांकि ये नेशनल डिजिटल लिटरेसी मिशन अपने लक्ष्य को 6 महीने में ही पूरा कर लिया। इस मिशन ने तकनीकी जानकारी देने के साथ-साथ युवा वर्ग में काफी उम्मीदें जगाई है। ग्रामीण युवा जो पहले अपनी पुर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाते हुए मछुआरा बनना चाहते थे, वो अब कंप्यूटर औऱ इंटरनेट के जरिए काम की तलाश में जुट गए हैं। साथ ही गांव की महिलाएं और छात्राओं ने भी इसे गंभीरता से लिया है ताकि इसके सहारे नौकरी या कोई व्यवसाय शुरू कर सकें और परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में हाथ बंटा सकें।
हालांकि, ये उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बनाने या पूरी तरह रोजगार दिलाने के लिए काफी नहीं था। इसी लिए इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन ने इसी साल 2 जनवरी को मुथयलम्मापालम से सटे गांव वाडाचिपुरुपल्ली में सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र यानी सीआईआरसी की शुरुआत की है, जहां मुथयलम्मापालम के मछुआरों के अलावा वाडाचिपुरुपल्ली के लोग भी कंप्यूटर, इंटरनेट की शिक्षा लेकर मौसम से जुड़ी जानकारी खुद ढूंढ सकेंगे। इस सीआईआरसी पर कंप्यूटर, इंटरनेट शिक्षा के अलावा पंचायत के लोगों को सूचना और तकनीकी रूप से संपन्न बनाने के लिए वर्कशॉप या ट्रेनिंग भी जल्द शुरू होगी, ताकि पंचायत के सदस्य भी अपना कामकाज कंप्यूटर औऱ इंटरनेट के माध्यम से तेजी से निपटा सकें।
हालांकि, वाडाचिपुरुपल्ली में सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र कोई पहला सेंटर नहीं है जहां कंप्यूटर, इंटरनेट शिक्षा के अलावा पंचायत के लोगों को सूचना और तकनीकी रूप से संपन्न बनाने के लिए वर्कशॉप या ट्रेनिंग की सुविधा हो। भारत के 20 राज्यों में ऐसे 32 सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र हैं जहां ग्रामीणों को उनके व्यवसाय एवं जरूरतों के मुताबिक सूचना और शिक्षा की सुविधा मौजूद है। साथ ही जल्द इन सभी केंद्रों पर ब्रिटिश काउंसिल और डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन के संयुक्त प्रयास से अंग्रेजी की शिक्षा भी दी जाएगी, ताकि ग्रामीणों को किसी भी तरह की सूचना प्राप्त करने या संपर्क करने में किसी तरह की परेशानी न हो।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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