मानसून की दस्तक से पहले तक महाराष्ट्र का लातूर जिला देश का सबसे सूखा प्रभावित क्षेत्र था। तीन-चार साल से यहां का यही हाल है। लातूर में एक सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र है। इस साल जनवरी से इसमें हर रोज 560 लोग डिजिटल साक्षरता के लिए आते हैं, जिनमें से ज्यादातर बच्चे और औरतें हैं। इनमें ज्यादातर लोग उन परिवारों से हैं, जो सीधे तौर पर सूखा पीडि़त हैं। उसके बावजूद ये बच्चे हर रोज यहां आते हैं।
कुछ के लिए यह मौका होता है, जिसके बहाने वे घर के बाहर निकल आते हैं, इसी बहाने वे थोड़ी देर के लिए ही अपने परिवार के दुख-दर्द को भूल जाते हैं। लेकिन इनमें बहुत से ऐसे भी हैं, जो अच्छे भविष्य के लिए तरक्की के औजार की तरह इसका इस्तेमाल सीखना चाहते हैं। संसाधन केंद्र के स्थानीय कर्मचारियों और यहां आने वाले छात्रों को जब इस बात के लिए प्रोत्साहित किया गया कि वे इस क्षेत्र का विस्तृत ब्योरा तैयार करें, इसकी समस्याओं को पहचानें और समाधान के अपने सुझाव दें, तो नतीजे बहुत चौंकाने वाले रहे।
सबसे दिलचस्प यह रहा कि इन छात्रों ने जीपीएस और जीआईएस पर आधारित एप्लीकेशन तो इस्तेमाल किए ही साथ ही वाट्सएप, डिजिटल कैमरे और मोबाइल फोन का भी पूरा उपयोग किया, जिससे न सिर्फ सूखाग्रस्त इलाके का ब्योरा तैयार हो गया, बल्कि लातूर जिले के नौ सबसे ज्यादा सूखा प्रभावित गांवों की कहानियां भी सामने आईं। वे अनसुनी कहानियां, जो इलाके की दुर्दशा को ठीक से बयान करती हैं। इन नौ में से छह गांव ऐसे थे, जहां कई सूखा पीडि़त किसान आत्महत्या तक कर चुके थे। इन छात्रों ने जो मुख्य समस्याएं गिनाईं, वे थीं- मूलभूत जरूरतों के लिए भी पानी उपलब्ध न होना, सरकार द्वारा पेयजल की अनियमित आपूर्ति, मवेशियों के लिए चारे की कमी, पानी के भंडारण को लेकर जागरूकता न होना, और सबसे बड़ी समस्या थी, इन गांवों मेें मनरेगा योजना का ठीक ढंग से न लागू होना।
इन छात्रों ने सिर्फ समस्याएं ही नहीं गिनाईं, अपनी तरह से उनके समाधान भी बताए और सुझााव भी दिए। उनका कहना था कि स्वयंसेवी संगठनों, एनजीओ और सिविल सोसायटी को बोरवेल सौंप दिए जाने चाहिए, ताकि वे पूरे क्षेत्र में पेयजल की नियमित आपूर्ति करें। यह भी कहा गया कि पानी के लिए कुछ बूथ बनाए जाएं, जहां से लोग अपनी जरूरत के हिसाब से पानी ले सकें। जल संरक्षण और मनरेगा को ठीक से लागू करने के सुझाव तो थे ही, साथ ही दूषित पानी के कारण फैलने वाले रोगों से बचाव के लिए डॉक्टरों के नियमित दौरे जैसी सलाह भी दी गई। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि ये सारे सुझाव उन बच्चों ने दिए, जिन्होंने कुछ महीने पहले तक इंटरनेट का इस्तेमाल करना तो दूर, कंप्यूटर तक नहीं देखा था। जिन्हें अनपढ़ माना जाता था, वे अपने दुख-दर्द से मुक्ति के उपाय ढूंढ़ रहे थे।