ये बात सच है कि आज का समाज सूचना का समाज है। सूचना तकनीक ही एक ऐसाक्षेत्र है जिसमें भारत दुनिया के अग्रणी देशों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। आज भारत में करीब पांच करोड़ लोग ऑनलाइन हैं और और करीब सात करोड़ लोग किसी न किसी रूप में सर्च इंजन का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें शिक्षक, छात्र औऱ समाजसेवी समेत समाज का लगभग हर वर्ग शामिल हैं।
इसके बावजूद हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि भारत को अभी तकनीक और सूचना क्रांति के क्षेत्र में पूरी सफलता के लिए लंबी दूरी तय करनी हैं। आज इस लेख के जरिए मैं यहां सूचना समाज के साथ-साथ शिक्षक व शिक्षिका एवं शैक्षिक- तकनीक पर भी नजर डालेंगे जो किसी भी देश का भविष्य बनाने में अहम रोल अदा करते हैं। हालांकि, धीरे ही सही आज भारत के स्कूल,कॉलेज और मदरसे आधुनिक शिक्षा के अलावा सूचना तकनीक के इस्तेमाल पर जोर देने लगे हैं। अगर यही संस्थाएं इन आधुनिक तकनीकी सुविधाओं का इस्तेमाल एक प्रभावशाली ढंग से करें तो बच्चों के सर्वांगीण विकास को कोई नहीं रोक सकता और इन बच्चों के सर्वांगीण विकास से हीं एक नए आधुनिक भारत का निर्माण होगा।
सिर्फ स्कूल , कॉलेज ही नहीं यूनिवर्सिटी स्तर पर सूचना- तकनीक तंत्र को आधुनिक और मजबूत बनाने की कोशिश जारी है। नई सूचना और शैक्षिक-तकनीक के इस्तेमाल का ही नतीजा है कि देश के दूर दराज गांव में रहने वाले छात्र-छात्राएं कई प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो रहे हैं और सफलता भी हासिल कर रहे हैं। हम सबको मालूम है कि दूर दराज गांव में रहने वाले छात्र-छात्राओं को किसी सूचना को हासिल करने के लिए किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
ऐसे में यह शैक्षिक-तकनीक का ही चमत्कार है कि आज कई यूनिवरसिटी और गैर सरकारी संस्थाओँ द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्रों पर ऑनलाईन कोर्स या सूचना पाने वालों की संख्या बढ़ ती जा रही है। अगर गांव या पंचायत स्तर पर नजर डालें तो पाएंगे कि कंप्यूटर ने बच्चों ही नहीं सभी ग्रामीणों में एक अलग ही किस्म का आत्म-विश्वास पैदा किया है। और इस तरह कहना गलत नहीं होगा कि यकीनन सूचना संसाधनों पर सवार हमारा समाज एक नया शक्ल अख्तियार करता जा रहा है।
इसी सिलसिले में एक बार पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी कहा था कि ज्ञानवान समाज विकसित समाजों का नेतृत्व करता है। लेकिन, ये कोई कैसे तय करे पाएगा कि कौन-सा समाज या वर्ग ज्ञान, सूचना, प्रसारण में सक्षम हो चुका है। ये बहुत ही अहम सवाल है कि वह कौन सा निर्णायक पैमाना होगा, कौन इसकी जांच करेगा?
शायद इसका जवाब जानने के लिए हमें उन आधरभूत बिंदुओं पर नजर डालना होगा जो हमें सूचना-प्रौद्योगिकी से लैस समाज-निर्माण में ख़ासे अहम रोल अदा करती हैं। सूचना, शिक्षा, प्रशिक्षण और तकनीक व प्रौद्योगिकी एक दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। इनमें से किसी को भी अलग कर नहीं चला जा सकता। वैसे भी सूचना जब तक सही समय पर, सही माध्यम से, सही व्यक्ति-समाज तक नहीं पहुँचता तब तक उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। इसलिए सूचना को विशेष शिक्षा-प्रशिक्षण का सहारा जरूरी है।
निश्चित रूप से इक्कीसवीं सदी में भारतीय शिक्षा-व्यवस्था को नई मजबूती मिली है, लेकिन शिक्षा में नैतिक मूल्यों की कमी, राष्ट्रीय एकता के अभाव और शिक्षा की ‘अपनी’ संस्कृति से दूरी, इन चुनौतियों की जड़ों को तलाशने का प्रयास करते हुए हमें इक्कीसवीं सदी की शिक्षा-व्यवस्था के उन दो आधारों को देखना होगा, जो सरकारी और निजी व्यवस्था में बँटे हुए हैं। और ऐसे में हमें एकजुट होकर समाज की मुख्यधारा कटे समाज तक इस आधुनिक शिक्षा, सूचना और तकनीक की सुविधाओं को पहुंचाना होगा ताकि वो भी देश के दूसरे समाज के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल सकें और नए सूचना संपन्न भारत का निर्माण हो सके।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।