आमतौर पर मीडिया कहते ही सबसे पहले जेहन में अख़बार-मैगज़ीन या टेलीविजन-रेडियो का ख़्याल आता है। लेकिन, मीडिया का दायरा यहीं तक सीमित नहीं है। मीडिया में सबसे पहले प्रिंट मीडिया यानी अख़बार, मैगज़ीन, और सरकारी दफ़्तरों से निकलने वाले पत्र-पत्रिकाओं का आते हैं। इनके बाद रेडियो यानी आकाशवाणी का नंबर आता है। फिर, दूरदर्शन और टेलीविजन के तमाम चैनल्स की बारी आती है। और आख़िर में सबसे युवा और अहम न्यू मीडिया का नबंर आता है। न्यू मीडिया, मीडिया का वो हिस्सा है जिसने पूरी दुनिया को गांव में तब्दील कर दिया है।
इसका एक उदाहरण है पाकिस्तान की शेर बानो, जिसके बारे में हमने हाल ही में अपने लेख में जिक्र किया था। पाकिस्तान के एक कबायली इलाके में रहते हुए भी शेर बानो ने कई सामाजिक मुद्दों को सोशल मीडिया की मदद से दुनिया के सामने उजागर किया।
हालांकि, सोशल मीडिया और नई तकनीक को गले लगाने की दौड़ में शेर बानो अकेली नहीं है। उसके जैसी कई और महिलाएं और पुरुष हैं, जिन्होंने इसे सिर्फ संपर्क औऱ नेटवर्किंग का साधन नहीं बनाया, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं।
इस लेख में एक ऐसी ही जुझारू महिला से आपको रूबरू कराऊंगा जो युद्ध क्षेत्र की विपरीत और कठिन परिस्थितियों में भी अपने देश को एक नई दिशा देने के लिए लगातार संघर्षरत है। वो महिला है श्रीलंका की सुपीपी जयवर्द्धने, जिसने समाज में चेतना जगाने के लिए फेसबुक, ट्विटर जैसे मंचों को गले लगा लिया है।
दरअसल श्रीलंका, भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित द्वीप राष्ट्र है, जो चार साल पहले तक गृह युद्ध की चपेट में था। यही एक भारत के बाहर ऐसा देश है जहां भारत जैसा ही व्यवहार और एहसास मिलता है। चारों तरफ हिंद महासागर से घिरे इस छोटे से द्वीप के भारत के साथ सांस्कृतिक रिश्ते काफी पुराने हैं। मूंगे और पन्ने की चट्टानों वाला यह देश जितना खूबसूरत है, उतना ही जीवंत भी। शायद यही वजह है जो सुनामी की तबाही और गृह युद्ध के बाद जल्द ही वहां जिंदगी अपनी पुरानी रवानी में आ गई। इसी बदलते दौर के साथ सोशल मीडिया ने भी अपना रंग बदलना शुरू कर दिया। इसमें कोई शक नहीं है कि आज जीवनशैली को इंटरनेट ने काफी हद तक प्रभावित किया है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी की इस नई तकनीक ने विश्व की सीमाओं को तोड़ दिया है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए आज कोई भी व्यक्ति एक-दूसरे से कहीं से भी संपर्क साध सकता है। इसका इस्तेमाल करने वाले युवाओं की तादाद भी लगातार बढ़ रही है।
इन्हीं युवाओं में से एक सुपीपी जयवर्द्धने भी हैं, जिन्होंने इसका इस्तेमाल सिर्फ संपर्क साधने के लिए ही नहीं, बल्कि अपने देश में राजनेताओं की नई नस्ल तैयार करने में कर रही हैं। सुपीपी श्रीलंका में एक ऐसी संस्था चलती हैं जहां राजनीति में इच्छुक युवाओं को सफल चुनाव प्रबंधन में तकनीक और सोशल नेटवर्किंग के सही इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी जाती है।
ऐसे भी आज का दौर इंटरनेट और तकनीक का है, जहां हर काम किसी न किसी रूप में इसकी मदद का महोताज है। सुपीपी जयवर्द्धने का मानना है कि अब राजनीतिक पार्टियां भी समझ गईं हैं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने का सबसे बेहतरीन जरिया सोशल मीडिया ही है। वैसे भी एक अच्छा नेता बनने के लिए राजनीति में कई बातें होती हैं, उसमें कम्युनिकेशन एवं नेटवर्किंग भी एक अहम रोल अदा करता है और सोशल मीडिया इसका एक अच्छा ज़रिया है।
हाल ही में घटित कुछ घटनाओं पर गौर करने से भी हमें पता चलता है कि किस कदर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और न्यू मीडिया (ख़ासतौर पर सोशल मीडिया) की पहुंच और असर अचूक रहा है। एक रिसर्च के मुताबिक सोशल मीडिया में रेडियो, टी वी, इंटरनेट और आईपॉड आता है। रेडियो को कुल 74 साल हुए हैं, टीवी को 14 साल और आईपॉड को 4 साल । लेकिन, इन सब मीडिया को पीछे छोड़ते हुए सोशल मीडिया ने अपने पांच साल के अल्प समय में 60 गुना से ज्यादा रास्ता तय कर लिया है, जितना अभी तक किसी और मीडिया ने तय नहीं किया।
इस रफ्तार से साफ पता चलता है कि आने वाले दिनों में कोई भी दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहे, इंटरनेट और सोशल मीडिया उसे ज़रुर प्रभावित करेगा।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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