12 नवम्बर, दीवाली की आहट लिए वो जगमगाती शाम, जब पूरा देश इस रोशनी के पर्व को मनाने की तैयारी कर रहा था, मुझे अजमेर जिला के आराइं पंचायत भवन से एक फोन आया। उस फोन पर किसी ने कहा- क्या मैं आपसे स्काइप पर बात कर सकता हूं? ये मेरे लिए किसी हैरत से कम नहीं नहीं था। क्योंकि वो फोन एक ऐसे गांव से आया था, जहां इंटरनेट या उच्च तकनीकी सुविधा का नामो निशान तक नहीं है। और, उस फोन पर कोई और नहीं बल्कि आराइँ गाँव के कुछ उत्साहित युवा जो टैबलेट व लैपटॉप से पूरी तरह लैस थे। जिसके जरिए कि वे किसी से भी बिना उसके नजदीक गए पूरी स्पष्टता के साथ बात कर सकते थे।
आराइँ अजमेर जिला का एक बडा गाँव है जहाँ सिर्फ 52 फीसदी लोग शिक्षित हैं। और 380 घरों में किये गये एक सर्वे के मुताबिक गांववालों के लिए संचार का मुख्य साधन मोबाइल फोन है। सभी 2000 घरों में औसतन कम से कम दो मोबाइल है। 6000 से ज्यादा आबादी वाले इस गांव का मुख्य पेशा कृषि होने के बावजूद बैंक, हॉस्पीटल, पुलिस थाना, डाकघर, बस स्टेशन व विभिन्न सरकारी दफ्तर के साथ-साथ दो साइबर कैफे और फोटोकॉपी की सुविधा मौजूद है। अरांई में शिक्षा के लिए 3 प्राथमिक व 1 माध्यमिक स्कूल के साथ दो कॉमन सर्विस सेन्टर भी देखा जा सकता हैं। बावजूद इसके गांव में डिजिटल या इंटरनेट का कोई कल्चर या परिपाटी नहीं है।
दरअसल, गाँव में 60 प्रतिशत छोटे व हाशिये पर रहने वाले किसान हैं। लेकिन ये सब इतिहास हो सकता है क्योंकि अरांइ पंचायत (गाँव का शासन केंद्र) 10 नवम्बर को देश का पहला पंचायत बन गया जहाँ पंचायत भवन परिसर में ही 100 मेगाबाइट प्रति सेकण्ड (एमबीपीएस) वाली ब्रॉडबैण्ड ऑप्टिक फाइबर लाइन पहुंच चुकी है। मेरा मानना है कि जब एक गाँव में इंटरनेट व कम्प्यूटर आते हैं तो जरूर कुछ होता है। वैसे भी स्थानीय लोगों के लिए ये कोई जादू के बक्से से कम नहीं होता।
ऐसे में अगर, हम आरांइ की बात करें तो, हमलोग इंटेल फाउण्डेशन व भारत ब्रॉडबैण्ड नेटवर्क लिमिटेड के साथ काम कर रहे हैं ताकि अरांइ पंचायत में एक पूरी तरह डिजिटल लिटेरेसी मिशन केन्द्र बन सके। इस योजना के तहत पंचायत के हर घर का एक व्यक्ति डिजिटली शिक्षित बन सके। हालांकि, शुरू में हमलोग देश में 3 जगहों पर कर रहे हैं, जिनमें अरांइ सबसे पहला गांव है। दूसरे 2 गाँव उत्तरी त्रिपुरा में पानीसागर और आँध्र-प्रदेश के विशाखापट्टनम में मुथ्थयल्लमापालम है।
अगर मुख्य पेशा और मौसम को छोड़ दें, तो त्रिपुरा के पानीसागर और विशाखापट्टनम में मुथ्थयल्लमापालम की हालत भी अरांइ से मिलती जुलती है। इन तीनों जगहों पर अगर कोई समानता है तो वो है नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का मौजूद होना, लेकिन फिर भी गांववालों तक इंटरनेट की सुविधा का नहीं होना। जहां त्रिपुरा का पानीसागर पहाड़ों के बीच बसा है तो वहीं मुथ्थयल्लमापालम समंदर के किनारे एक छोटा सा गांव है। इन जगहों पर यकीनन इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराना किसी चुनौती से कम नहीं है। तमाम कोशिशों के बावजूद अब भी अरांइ के अलावा दो अन्य डिजिटल लिटेरेसी मिशन केन्द्रों पर इंटरनेट की सुविधा चालू नहीं हो सकी है।
हालांकि, यहां हमारा मकसद किसी तरह की टिप्पणी करना नहीं, बल्कि यह विश्लेषण करने का है, कि कैसे 100 एमबीपीएस का ब्रॉडबैण्ड लाइन गाँवों और गांववालों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं। मेरा आसान सा जवाब है कि हमारे देश को हमेशा अच्छे सड़क (हाईवे) की जरूरत रही है ताकि व्यापार व उद्यमिता बढं सके। लेकिन जो अबतक नहीं मिल सका। ऐसे में एक ही रास्ता है कि हमें सूचना का सुपरहाईवे मिले। उच्च स्तर की ब्रॉडबैण्ड से हम सूचना व ज्ञान को ऑडियो-विजुअल विधि से आपस में बाँट सकते हैं।
मालूम हो कि 20,000 करोड़ की सरकारी परियोजना जिसके जरिए 250000 पंचायतों को 100 एमबीपीएस लाइन से जोडा जाना है, ताकि गांव-गांव में हर घर को 148 किलोबाइटस् प्रति सेकण्ड (केबीपीएस) की लाइन पहुंच सके। 2011 के जनगणना के अनुसार भारत में कुल 24 करोड़ 70 लाख घर हैं। अगर हम ग्रामीण क्षेत्रों के 16 करोड़ 80 लाख घरों को पंचायतों की कुल संख्या से विभाजित करें तो पाएंगे कि हर पंचायत में 672 घरों को 100 एमबीपीएस की ब्रॉडबैण्ड लाइन बाँट सकेंगे।
लेकिन, आखिर में ये देखना रोचक होगा कि कैसे सरकार व प्राइवेट कंपनियाँ इस महत्वाकांक्षी योजना को देखते हैं। क्योंकि हमारे लिए एक बड़ा अहम सवाल ये है कि – क्या हमारे देश के गांववाले जो किसी तरह खेती, मजदूरी कर जीवन बसर करते हैं, इंफो हाइवे के लिए पैसे दे पाएंगे?
ओसामा मंजर
डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन
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