आजकल साधनों, सुविधाओं और संसाधनों की कोई कमी नहीं है। धन की भी कोई बहुत बड़ी समस्या अब नहीं रही। सरकार की कई ऐसी योजनाएं हैं जो आदमी के पैदा होने से लेकर मौत के बाद तक सामाजिक सरोकारों को पूरा करने के लिए काफी हैं। पूरा माहौल लाभकारी माहौल से भरा हुआ है। योजनाओं, कार्यक्रमों, परियोजनाओं, अभियानों वगैरह की हर क्षेत्र में भरमार है। इंसानी जिंदगी के हर पहलू से लेकर परिवार, समाज और समुदाय तक की तरक्की के लिए ढेरों अवसर भी खुले हुए हैं। इन सब के बावजूद अपने विकास के लिए जरूरी संसाधन के इस्तेमाल गांव वाले महरूम हैं। जिसका एक मात्र कारण है सूचना का आभाव।
क्षेत्रीय विकास के लिए सरकार की ढेरों योजनाओं के बारे में आम जन को परिचित कराकर या ग्रामीणों का मार्ग दर्शन से ही उन्हें विकास के आयामों से जोड़ा जा सकता है। इसके लिए एक ऐसे केंद्र की स्थापना करनी होगी जहां शिक्षा के साथ-साथ सभी तरह की सूचनाएं मिल सकें, ताकि गांव में एक नई जनचेतना फैल सके। इससे ग्रामीणों को अपने पाँवों पर खड़े होने का बेहतर माहौल पैदा होगा। साथ ही गांववालों को कुछ ऐसी ट्रेनिंग की सुविधा प्रदान करनी होगी, जिसमें उनकी रूचि हो और उसे वो अपना रोजगार का साधन भी बना सकें।
ऐसे भी डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में विकास और कारोबारी तौर-तरीकों में हुए बदलाव की वजह से आज अपनी रुचि के क्षेत्र में रोजगार या नौकरी करने के काफी मौके मौजूद हैं। यानि कोई भी शख्स किसी भी काम को करने से खुशी महसूस करता हैं, तो वो आसानी से उसे अपना कैरियर बना सकता हैं। जैसें फोटोग्राफी, विडियोग्राफी, रिपोर्टिंग, मोबाइल रिपेयर, वेबसाइट डिजाइन या सोशल मीडिया आदि।
कहने की जरूरत नहीं कि डिजिटल संसार अब सोशल मीडिया की भूमिका निभा रहा है। उसकी सूचनाएं रोजाना प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की खबरें बनने लगी हैं। यह सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव का सबूत , मुख्यधारा के मीडिया के साथ उसके मजबूत होते रिश्तों को भी दर्शाता है। आज के युग में विचारधारा को प्रभावित करने में सोशल मीडिया भी काफी अहम भूमिका निभाने लगी है। जिसकी वजह से इसी क्षेत्र में इसके जानकारों की मांग भी उठने लगी है।
जैसे अगर कोई सोशल मीडिया पर हमेशा मौजूद रहना पसंद करता हैं, तो इस क्षेत्र के विशेषज्ञ भी बन सकता हैं। भारत में जहां करीब 12 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें 1 करोड़ 60 लाख ट्विटर और 6 करोड़ लोग फेसबुक से जुड़े हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में 3 जी के साथ-साथ इसका भी तेजी से विस्तार देखने को मिलेगा, जिससे रोजगार के नए नए अवसर भी सामने आएंगे।
इसी तरह, जहां आज देश में करीब 80 करोड़ मोबाइल फोन उपभोक्ता हैं। ऐसे में मोबाइल एप्लीकेशन में रुचि रखने वाले के लिए मोबाइल एप्लीकेशन प्रोग्रामर एक बेहतर कैरियर हो सकता है। या फिर कोई ग्रामीण पत्रकारिता में कैरियर बनाने के इक्छुक हो या सामाजिक उद्यमी बनने की चाह रखता हो तो, उसके लिए भी सम्भावनाओं से भरा ये एक दूसरा कैरियर विकल्प हो सकता है। और ये तभी मुमकिन है जब देश भर के हर पंचायत या ब्लॉक में एक ऐसा केंद्र स्थापित हो, जहां सभी प्रकार की सूचनाओं के साथ – साथ शिक्षा औऱ रोजगार का मार्गदर्शन भी मिले।
हालांकि, केंद्र सरकार ने इस दिशा में पहल जरूर की है, पर वो इस सूचना की खाई को पाटने में सक्षम नहीं है। देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों की जनता को गांव में ही आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने के मकसद से सीएससी यानी कॉमन सर्विस सेंटर की शुरुआत की है। लेकिन, ज्यादातर इन केंद्रों पर या तो काम शुरू नहीं हो सका है, या फिर केंद्रों पर जानकारी के आभाव में गांववाले इसके इस्तेमाल से कन्नी काटते नजर आते हैं।
ऐसे में जरूरत है कि हम ग्रामीणों की रूचि और स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनके लिए ऐसी योजना बनाई जाए, जिससे वो न कि सिर्फ सूचना संपन्न हो सकें, बल्कि विशेष ट्रेनिंग से अपनी हुनर और रूचि को निखार कर रोजगार के नए अवसर का भी फायदा उठा सकें।
इसी क्रम में करीब तीन साल पहले, जब मुझे इस कमी अहसास हुआ तो हमने भी सूचना की खाई को पाटने के मकसद से ‘सीआईआरसी’ यानि ‘सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र’ की शुरुआत की। जहां ग्रामीणों को पंचायत से जुड़ी हर योजना, विकास कार्यों की जानकारी के अलावा पंचायत को ऑनलाइन करने के लिए डिजिटल पंचायत, गैर-सरकारी संस्थाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से ई-एनजीओ प्रोग्राम और बेसिक कंप्यूटर, इंटरनेट कोर्स जैसी सुविधा मौजूद है। इसके अलावा उनकी रुचि और हुनर के अनुसार उन्हें ट्रेनिंग भी दी जाती है ताकि उसे वो अपना रोजगार का साधन बना सकें। पहले चरण में देशभर के 30 जगहों पर स्थापित सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्रों पर किसान, व्यापारी, छात्रों के अलावा महिलाएं भी सुविधाओं का लाभ उठा रहीं है। दूसरे चरण में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विशेष रूप से 40 और सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र बनाने की योजना है, जो महिलाओं के लिए, महिलाओं द्वारा संचालित होगा।
आज जब विकास में ज्ञान और तकनीक एक बड़ी भूमिका निभा रही हैं, ऐसे में देश के एक बड़े तबके को इससे वंचित नहीं रख सकते। दुर्भाग्यवश हमारी सरकारों के पास आवश्यक संसाधन और दूरदृष्टि की कमी से ज्यादातर गांव विकास की मुख्यधारा से आज भी कटे हुए हैं। ऐसे हालात में जरूरत है ‘सामुदायिक सूचना संसाधन’ यानी ‘सीआईआरसी’ जैसी संस्थाओं की, जो केंद्र सरकार और गांवों के बीच एक कड़ी के रूप में बड़ी भूमिका अदा कर सूचना संपन्न समृद्ध गांव का निर्माण करें, ताकि देश का संपूर्ण विकास हो सके।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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