आदिवासी समुदायों की रक्षा के लिए असम में साल 1976 में कार्बी आंगलोंग जिले का गठन किया गया। यह असम व संभवत: उत्तर-पूर्व क्षेत्र में सबसे बड़ा जिला है। यहां कार्बी, बोडो, कुकी जैसी जनजातियां बसती हैं। यह जिला देश के 250 अत्यंत पिछड़े जिलों में भी गिना जाता है। 1995 में समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद् के माध्यम से इस जिले को विशेष दर्जा दिया गया। जिला मुख्यालय दिफू में कुछ दिन रुकने के बाद ऐसे संकेत मिले कि इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हुए हैं। प्रश्न उठता है कि क्या इस खाई को ‘डिजिटल समावेशन’ से भरना संभव है? 10,434 वर्ग किलोमीटर में यह इलाका फैला हुआ है, पर विडंबना देखिए कि यहां सिर्फ 13 पब्लिक इंटरनेट इंटरफेस हैं। इंटरनेट की सार्वजनिक सुविधा, यानी पीएफसी महज एक है और 12 सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) हैं। स्थानीय लोग इन्हें अरुणोदय केंद्रों के नाम से जानते हैं। दिफू में पीएफसी 2005 में लगी। मार्च 2005 से अब तक इस जिले में पीएफसी एवं सीएससी के जरिये कुल 129,855 सेवाएं जारी हुई हैं। प्रस्तावित सेवाओं में सीएससी की प्रतिशत भागीदारी चार प्रतिशत ही है।
भारत में लगभग 635 आदिवासी समूह व उप-समूह हैं। इनमें 73 प्राचीन जनजातियां हैं। ये सब मिलकर आबादी का 8.2 प्रतिशत हिस्सा हैं। मध्य-व उत्तर-पूर्व भारत के सात राज्य आदिवासी बहुल हैं। आदिवासी इलाकों में आज भी प्राथमिक पेशा कृषि ही है। आदिवासी समुदाय की पहचान हैं- गरीबी, निरक्षरता, अल्प आय, खाद्य असुरक्षा, नागरिक सुविधाओं की कमी, बदतर शैक्षणिक सुविधाएं और बेरोजगारी।
डिजिटल माध्यम इन समुदायों के बीच की दूरी को कम करने में प्रभावी साबित हुआ है। पर यह तथ्य केंद्र व राज्य स्तरों के आदिवासी विकास कार्यक्रमों में गायब है। संविधान के आर्टिकल 275 (1) के तहत जनजाति उप-योजना विशेष केंद्रीय मदद की सुविधा देती है, ताकि आदिवासी विकास कार्यक्रमों में निवेश हो। 14 से भी अधिक आदिवासी शोध संस्थान उचित विभागों को इनपुट्स मुहैया कराते हैं। जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ उत्पाद और सेवा के स्तर पर स्थायी आय व आजीविका का माध्यम उपलब्ध कराता है।
इसी तरह, 19 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में 192 एकीकृत आदिवासी विकास परियोजनाएं और आदिवासी विकास संस्थाएं हैं। इनमें सूचना एवं संचार तकनीकों (आईसीटी) का अभाव है। निस्संदेह, आदिवासी लोगों को डिजिटल हुनर व शिक्षा की जरूरत है। ऐसे में, क्या हमें एक अलग योजना या कार्य, जैसे ई-ट्राइबल पॉलिसी या आईसीटी फॉर ट्राइबल एक्शन प्लान चाहिए? कार्बी आंगलोंग को देखते हुए यह ध्यान देना जरूरी है कि आदिवासियों का विकास इनके डिजिटल विकास के साथ ही पूरा होगा।
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