देश के कोने-कोने में राशन उपलब्धता की सूचना हो या सरकारी स्कूलों के बच्चों की छात्रवृति की खबर, अब सभी तरह की खबरें चुटकियों में मिल जाते हैं। चाहे वो खेत में हलधर किसान हो या गांव में अपना परिवार छोड़ शहर के किसी कोने में मजदूरी करता नौवजान, सभी एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन यानी मोबाइल का बटन दबाकर मनचाही खबर पा लेते हैं। हालांकि, टेलीफोन युग से मोबाइल युग आने में काफी वक्त लगा, लेकिन मोबाइल क्रांति ने जिसतरह सामाज की खाई को पाटा है वो काबिले तारीफ है। देश में मोबाइल क्रांति की आमद भी इसी अरमान के साथ हुई थी कि यह अमीरी-गरीबी और रंग-भेद का फर्क किए बगैर हर शख्स के लिए बातचीत की सुविधा मुहैया करा पाएगा। पहले टेलीफोन सिर्फ अमीर और प्रभावशाली लोगों के पास हुआ करता था। फिर भी मोबाइल टेलीफोनी के शुरुआती दौर में यह सोच पाना मुश्किल था कि सिर्फ 18 साल में भारत का एक रिक्शा चालक और माइग्रेंट लेबर (शहरों में काम करने वाला मजदूर) जैसा तबका भी बेफिक्र होकर गांव-देहात में अपने परिवार से जब चाहे बात कर सकेगा। वह न सिर्फ पीसीओ बूथ के खुलने-बंद होने की चिंता से मुक्त होगा, बल्कि पीसीओ का बाजार ही खत्म कर देगा।
देखते देखते समय के साथ समाज ने भी रंग बदला। आज जब मोबाइल अपना 40वां सालगिरह मना चुका है, ऐसे सूचना औऱ तकनीक युग में प्रवेश कर चुके हैं जहां हमें रोजाना कई ऐसे लोग देखने को मिल जाते हैं जो कंप्यूटर और लैपटॉप के ज़रिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन, ऐसे लोगों की भी तादाद कम नहीं जो मोबाइल के ज़रिए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत में मोबाइल इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी से लग जाता है कि देश में 1.5 करोड़ ब्रॉडबैड इंटरनेट यूजर्स है जबकि मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या करीब 9 करोड़ तक पहुंच गई है।
हमारे देश में 18 साल पुरानी मोबाइल के इस सफर की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि आज देश में मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या 90 करोड़ हो चुकी है। अगर, इसी रफ्तार से उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ती रही तो वो दिन दूर नहीं जब हम ये भी दावा करने लगेंगे कि सवा अरब की आबादी वाले इस मुल्क में इतने ही मोबाइल कनेक्शन हैं। औऱ फिर उसी रफ्तार में बढ़ेगी मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या।
हाल ही जारी रिसर्च कंपनी इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) की एक रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि मोबाइल इंटरनेट यूज़र्स का आँकड़ा मार्च 2014 तक 16.5 करोड़ पर पहुंच सकता है।
आज हालत ये है मोबाइल औऱ इंटरनेट लोगों की रोजमर्रा की जरूरत बन चुकी है। जहां इसने दूरदराज गांवों को सूचना औऱ संचार के हाइवे से जोड़ा है, वहीं सूचना क्रांति लाने वाली इस इलेक्ट्रॉनिक मशीन ने लोगों के लिए रोजगार के कई अवसर भी पैदा किए हैं, जिसका पूंजी निर्माण में बड़ा योगदान है।
तेजी से बदलते इस हालात को देखकर कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता हैं कि भारत के इंटरनेट उद्योग में अगर किसी क्षेत्र में क्रांति आने वाली है तो वो होगी मोबाइल के क्षेत्र में क्रांति। अगली क्रांति की आहट हमें आज नए उपभोक्ता के रूप में मिलने लगी है, जो इंटरनेट पर पहली बार आ रहे हैं और मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।
तेज़ी से बढ़ रहे मोबाइल इंटरनेट के बाज़ार में सेवाएं बेहतर करने के लिए कंपनियां भी तकनीकी सुधार कर रही हैं। बड़े शहरों में डाटा सेवाएं बेहतर की जा रही हैं, जबकि छोटे शहरों और गांवों में 3जी सेवाएं पहुंचाने पर काम जोरों पर है।
18 साल पहले जब देश में मोबाइल फोन सेवाओं की शुरुआत हुई थी , तब हथौड़े या ईंट के छोटे टुकड़े जैसा दिखने वाला सबसे सस्ता मोबाइल हैंडसेट भी 25 हजार का था। आउटगोइंग और इनकमिंग , दोनों तरह की कॉल का रेट था 32 रुपया प्रति मिनट। लेकिन आज हाल ये है कि मोबाइल हैंडसेट तब की कीमत के दसवें हिस्से से भी कम हो चुके हैं और इनका रूप – आकार भी पहले से काफी सुधर गया है। आज जहां मोबाइल सर्विसेज प्रति सेकंड तक सिमट गया है वहीं इनकमिंग कॉलें भी मुफ्त हो चुकी हैं, जिसका फायदा सरकार के साथ-साथ समाज को भी हुआ। एक तरफ जहां मोबाइल सेवाओं का दायरा देश के लगभग हर आदमी तक पहुंच गया, तो दूसरी तरफ इन सेवाओं के सहारे सरकार की पहंच भी दूर-दराज के गांवों तक हो गई। आज जहां गांव का एक किसान मोबाइल पर किसान केंद्र से मुफ्त सलाह ले पाता है ,वहीं सुरक्षा की दृष्टि से भी इसकी भूमिका अहम है। खास तौर से शहरी लड़कियों में सुरक्षा का एहसास जगाने में मोबाइल फोन काफी मददगार रहा है।
सरकारी, गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और फोन कंपनियां भी इस बात को काफी अच्छी तरह से वाकिफ हो चुकी हैं कि जिस विकास को मानव खुद की कोशिश से अंजाम नहीं दे पाया उसे एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण यानी मोबाइल फोन के सही इस्तेमाल से हासिल किया जा सकता है।
आज कई ऐसी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं (एनजीओ) हैं, जिन्होंने समाज के विकास के लिए मोबाइल या मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल कर रहीं है। बिहार में स्वास्थ्यकर्मी गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी जानकारी मोबाइल फोन के जरिये देने के लिए मोबाइल कुंजी नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत गई। जिसके शुरुआती चरण में राज्य आठ जिलों के स्वास्थ्य कर्मियों ने कुल 31,000 घंटों तक इस सुविधा की सेवा ली है, जिससे कंपनियों को 11 लाख रुपये से ज्यादा का राजस्व कमाने में मदद मिली। मोबाइल कुंजी कार्यक्रमों की शुरुआत राज्य में मौजूद सभी दूरसंचार कंपनियों और बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और बीबीसी मीडिया एक्शन नाम के एक एनजीओ के साथ मिलकर की गई। इसी तरह मध्यप्रदेश, ओडिशा, उत्तरप्रदेश में भी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत दूरदराज इलाकों तक जानकारी देने के लिए मोबाइल फोन सुविधा शुरू होने वाली है।
समाज के प्रति समर्पित ऐसे संगठनों को हर साल एमबिलियंथ अवॉर्ड्स समारोह के जरिए प्रोत्साहित किया जाता है। हर साल की तरह इस साल भी 18 जुलाई 2013 को दिल्ली में कई ऐसे सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं सम्मानित होंगी, जिन्होंने मोबाइल के जरिए समाज की भलाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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