आज के माहौल में महिला सशक्तिकरण की बात करने से पहले हमें इस सवाल का जवाब ढूंढना जरूरी है कि क्या वास्तव में महिलायें अशक्त हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अनजाने में या स्वार्थ के लिए उन्हें किसी साजिश के तहत कमजोर दिखाने की कोशिश हो रही है?
इतिहास गवाह है कि मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ “ताकतवर को ही अधिकार” मिला है। और धीरे-धीरे इसी सिद्धांत को अपनाकर पुरुष जाति ने अपने शारिरीक बनावट का फ़यदा उठाते हुऐ महिलाओं को दोयम दर्जे पर ला कर खड़ा कर दिया। औऱ औरतों ने भी उसे अपना नसीब व नियति समझकर, स्वीकार कर लिया।
भारत में ही नहीं, दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और शोषण की नीतियों का सदियों से ही बोलबाला रहा है। इतना जरुर कह सकते हैं कि मापदंड व तरीके अलग-अलग जरुर रहे हैं ।
सीता से लेकर द्रौपदी तक को पुरुषवादी मानसिकता से दो-चार होना पड़ा है। हर युग में पुरुष के वर्चस्व की कीमत औरतों ने चुकाई है या उसे चुकाने पर मजबूर होना पड़ा है। यही वजह थी कि ढोल,गंवार, शुद्र, पशु नारी , ये सब ताडन के अधिकारी और नारी तेरी यही कहानी आंचल में दूध आंखों में पानी जैसी रचनायें रची गईं । ये साबित करने के लिए काफी है कि हमारे देश में देवी समान पूज्नीय नारी के आदर औऱ सम्मान में काफी हद तक पतन हुआ है।
विश्व की आबादी का एक चौथाई ग्रामीण महिलाएं एवं बालिकाएं हैं। लेकिन, वो सभी आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक सूचकांक के निम्नतम स्तर पर हैं। आय, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और निर्णय प्रक्रिया में उनकी सहभागिता काफी कम है। ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के अवैतनिक सेवा कार्यों में उनका योगदान बहुत ज्यादा है। जिन देशों में महिलाओं को भूमि के स्वामित्व का अधिकार नहीं है या जहाँ वे नकद राशि नहीं पा सकती हैं वहाँ कुपोषित बच्चों की संख्या भी काफी बडी है।
साल 2011 में इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार समारोह में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर देते हुए कहा था कि राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियां में महिलाओं की उचित भागीदारी के बिना सामाजिक प्रगति की उम्मीद करना बेइमानी है।
संयुक्तराष्ट्र के एक सर्वेक्षण के मुताबिक जहां-जहां महिलाओं की व्यापार और कॉरपरेट जगत में अहम भागीदारी रही है, वहां करीब 53% ज्यादा लाभांश और करीब 24% ज्यादा बिक्री दर्ज की गई । लेकिन, कुछ महिलाओं को ऊंचाई पर देख, हम अशिक्षित महिलाओं को नजर अंदाज नहीं कर सकते। हमारे देश में ऐसी अशिक्षित महिलाओं की संख्या ज्यादा है, जो आज भी गरीबी, कुपोषण और घरेलू हिंसा के शिकार हैं। यहीं नहीं ये महिलाएं बेटी को जन्म देने के फैसले के लिए भी वे पुरुषों पर निर्भर हैं ।
इसी साल संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आयोजित एक समारोह में महिलाओं की बराबर की भागीदारी पर जोर दिया था। उन्होंने कहा कि ग्रामीण महिलाओं और युवतियों की पीड़ा समाज की महिलाओं और लड़कियों को प्रतिबिम्बित करती है। अगर संसाधनों पर समान अधिकार हो और वे भेदभाव और शोषण से मुक्त हों तो ग्रामीण महिलाओं की क्षमता पूरे समाज की भलाई के स्तर में सुधार ला सकती है।
सही मायने में देखा जाये तो महिला सशक्तिकरण का अर्थ ही है महिला को आत्म-सम्मान देना और आत्मनिर्भर बनाना है, ताकि वो अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकें।
जब तक महिलाओं का सामाजिक, वैचारिक एवम पारिवारिक तौर पर उत्थान नहीं होगा तब तक सशक्तिकरण का ढोल पिटना एक खेल ही बना रहेगा । सामाजिक उत्थान का आधार-स्तंभ है नारी-शिक्षा और शिक्षित व्यक्ति ही अपनी समानता और स्वतंत्रता के साथ-साथ अपने कानूनी अधिकारों का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है ।
इसी मकसद से डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन ने देश भर में करीब ऐसे 40 डिजिटल रिसोर्स सेंटर यानी ‘डीआरसी’ की स्थापना करने का फैसला किया है जो महिलाओं द्वारा और महिलाओं के लिए संचालित होंगी। ये डीआरसी बतौर सूचना संसाधन केंद्र की तरह भी काम करेगा जहां महिलाएं हर तरह की सूचना प्राप्त करने के साथ-साथ कई तरह का प्रशिक्षण भी लेंगी जिसे वो अपनी जीविका का साधन बना सकें। फिलहाल, पहले फेज ऐसे 10 डिजिटल रिसोर्स सेंटर महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में खोले जाएंगे जिसके जरिए महिलाएं खुद को डिजिटली साक्षर बनाकर ग्रामीण विकास में सहयोग देंगी।
वैसे तो व्यवसाय, सरकार, सार्वजनिक प्रशासन, राजनीति और अन्य पेशा में महिलाएँ पहले से कहीं अधिक अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति बिल्कुल विपरित हैं।
ऐसे में गांवों का देश कहे जाने वाला देश भारत में अभी बहुत लम्बा सफर तय करना है ताकि महिलाएं और बालिकाएं अपने बुनियादी अधिकारों, आजादी और सम्मान का लाभ उठा सकें, जो उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। और इसके लिए डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन का डिजिटल रिसोर्स सेंटर उनके महिलाओं के सशक्तिकरण और कल्याण को सुनिश्चित करने में काफी मददगार साबित होगा। इससे सिर्फ ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण ही नहीं, बल्कि इसके साथ-साथ समाजिक विकास को भी नई गति मिलेगी।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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