समावेशी लोकतंत्र वही है, जो न सिर्फ अल्पसंख्यकों को राजनीतिक रूप से अपने भरोसे में लेने का दावा करता है और उनका यकीन जीतता है, बल्कि वह बदलाव में सक्षम नए कार्यक्रमों की योजना बनाता है और उनको लागू भी करता है। और ये नए कार्यक्रम यथार्थपरक व स्थायी होते हैं। ऐसे उपाय या कार्यक्रम इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि जब राजनीतिक शब्दाडंबर वास्तविक सशक्तीकरण को आगे नहीं ले जा पाते, तब यह मुमकिन है कि वंचित हिस्सेदार अपनी जरूरतों, इच्छाओं की पूर्ति और आजीविका के लिए विपथगामी बन जाएं। जाहिर है, ऐसे रास्ते व्यापक सामाजिक, राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अलग होते हैं और उनमें लोकतंत्र और प्रशासन को मजबूत करने की जिम्मेदारी और फर्ज का अभाव होता है।
अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण से जुड़े नए कार्यक्रमों से राजनीतिक व प्रशासनिक, दोनों तरह के लाभ होते हैं। इनोवेटिव विकास और सशक्तीकरण की योजनाएं भारत के अल्पसंख्यकों की दशकों पुरानी सामाजिक, आर्थिक और संस्थागत विसंगतियों को दुरुस्त करने के लिए जरूरी हैं। हम जैसे बहुलतावादी समाज की चुनौतियां भी काफी जटिल होती हैं। ऐसे में, हम बदलती जरूरतों और नजरिये के मुताबिक नई पहल कैसे कर सकते हैं? मसलन हम माइनोरिटी साइबर ग्राम योजना (एमसीजीवाई) को ले सकते हैं। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रलय ने फरवरी में राजस्थान के अलवर जिले के चंदोली गांव से इस मार्गदर्शी कार्यक्रम की शुरुआत की थी।
कार्यक्रम का लक्ष्य था- गांव के सभी 1,300 घरों के लोगों को एक साल के अंदर डिजिटली साक्षर बनाना। इस गांव में किसी के पास टेलीफोन या इंटरनेट सेवा नहीं थी और न ही वहां के किसी ने कभी कंप्यूटर का इस्तेमाल किया था। पर गांव के लोगों और कार्यक्रम के प्रशिक्षकों में गजब का उत्साह था। संपर्क, पहुंच और सशक्तीकरण के लिहाज से वहां वायरलेस और इंटरनेट सुविधाओं का बहाल किया जाना एक बड़ी उपलब्धि थी। हालांकि शुरू-शुरू में कुछ झिझक देखने को मिली, खासकर औरतों और जवान लड़कियों के केंद्र में आने को सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों के लिए खतरा महसूस किया गया, कुछ स्थानीय भ्रष्ट नेताओं की धमकियां व गड़बड़ियां भी देखने को मिलीं, लेकिन डिजिटल ज्ञान के फायदे ने इन सभी बाधाओं को दूर कर दिया और गांववासी सकारात्मक नजरिये के साथ इससे जुड़ गए।
एमसीजीवाई अपने व्यापक दायरे में पंचायतों, उनके तमाम कार्यक्रमों, स्थानीय स्कूलों, शिक्षकों और स्थानीय नागरिक समाज को जोड़ने की बात करती है। यह लोगों के लिए परिवर्तन का बड़ा दरवाजा खोल सकती है। इस तरह के तकनीकी और गैर-तकनीकी उपायों से जरिये अल्पसंख्यक समुदायों में बदलाव को प्रोत्साहन देने की जरूरत है, इससे उनका वाकई सशक्तीकरण हो सकता है।
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