लेकिन. अब यहां से एक असली सवाल शुरू होता है। सवाल यह है कि क्या जनता के बीच जाने का जो रास्ता सोशल मीडिया जैसी सूचना एवं तकनीक के जरिये बनाया गया था, वह आगे भी गवर्नेंस में दिखेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि सत्ता हासिल होते ही जनता से संवाद का ये तरीका भी यहीं थम जायेगा?
नई सरकार के तेवर देखकर तो ऐसा कतई नहीं लगता। हालांकि, इससे पहले कि हम किसी नतीजे पर पहुंचे हमें भारत की जमीनी सच्चाई से रूबरू होना जरूरी है।
2014 मार्च तक जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत के करीब 15 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हैं। यानी करीब सवा सौ करोड़ की आबादी में से मजह 12.5 फीसदी आबादी तक ही इंटरनेट की पहुंच संभव हो पाया है। ये तस्वीर और पेचीदा तब हो जाती है, जब हमें यह पता चलता है कि शहरों में रहने वाले 20 फीसदी भारतीय इंटनेट से जुड़े हैं, वहीं ग्रामीण भारत में यह आंकड़ा महज तीन फीसदी ही है। इंटरनेट उपभोक्ताओं के मामले में तीसरे पायदान पर खड़े भारत में कई और सवालों के जवाब तलाशे जाने बाकी हैं।
हालांकि, भारत की नई सरकार की मानें तो हम जल्द ही दुनिया को सूचना और तकनीक के माध्यम से अपनी ताकत का एहसास करा सकते हैं, जो असंभव नहीं है। इससे पहले राजीव गांधी ने भी सूचना और तकनीक की पुरजोर वकालत की थी, तब उनका ये कहकर विरोध किया गया था कि सरकार देश से गरीबी नहीं, गरीबों को हटाना चाहती है। लेकिन, आज 21वीं सदी के इंटरनेट युग में हम दस्तक दे चुके हैं, जहां सूचना और तकनीक से दूरी रखना एक ऐतिहासिक भूल होगी।
ऐसे हालात में अगर, किसी भी देश को तरक्की की राह पर अगर सरपट दौड़ लगाना है तो उसे गवर्नेंस में भी सूचना और तकनीक को अपनाना होगा। यानी ई-गवर्नेंस से ही जनता से संवाद और संपर्क का सिलसिला जारी रह सकता है। और ई-गवर्नेंस का जब तक आम आदमी से जुड़ाव नहीं होगा, तब तक उसका पूरा फायदा नहीं मिलेगा और नाही सरकारी योजनाएं पूरी तरह अमल में आ पाएंगी। ई-गवर्नेंस होने से बिना समय गंवाए लोगों को सेवाएं प्राप्त करने में किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है बिहार, मध्यप्रदेश, जिसने तेजी से ई-गवर्नेंस को अपनाया है और विकास की गति को एक नया आयाम दिया है।
इन राज्यों में जहां एक तरफ ऑनलाइन से शिकायतों का तत्काल निराकरण हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ राहत राशि सीधे किसानों के खाते में जा रही है। इसी तरह वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक तरफ प्रशासनिक कार्यों में समय और धन की बचत हो रही है, तो हर पंचायत को सूचना और तकनीक से जोड़ने का भी काम जारी है। यहीं नहीं, बिहार सरकार ने तो अपने सभी विभागों को भी कंप्यूटर औऱ इंटरनेट से जोड़ दिया है। इससे भ्रष्टाचार नकेल कसने में काफी मदद मिल रही है औऱ विभाग में पारदर्शी व्यवस्था कायम हो पाया है। जिससे अब किसी भी सरकारी काम के लिए किसी को कोई ‘चढ़ाव’ देना पड़ता। यानी कोई भी शख्स एक निश्चित शुल्क चुकाकर निर्धारित समय-सीमा के भीतर सेवाएं प्राप्त कर सकता है। इससे बढ़कर ई-गवर्नेंस से एक और खास फायदा ये है कि इससे सरकारी योजनाओं में आम लोगों की भी भागीदारी बढ़ेगी।
इसी मुद्दे पर 2012 में संयुक्त राष्ट्र संघ के इ-गवर्नेस सर्वे में भी आम लोगों की भागीदारी पर जोर देते हुए कहा गया था कि स्थायी विकास के लिए सरकारों के साथ आम जनता की भागीदारी जरूरी है, और इसके लिए इ-गवर्नेस इन दोनों के बीच एक पुल का काम करती है। अगर जनता को अपनी छोटी से छोटी जानकारी इंटरनेट के जरिये मिलने लग जाये, तो उसे सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। और यहीं हमें भारत की नई सरकार से भी अपेक्षा है।
आखिर में ई-गवर्नेस के समर्थन में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि ‘चूंकि मशीनें रिश्वत नहीं मांगती, इसलिए सुशासन के लिए ई-गवर्नेंस जरूरी है।‘
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।