आज से ठीक 3 साल पहले 2011 के जनवरी महीने में ब्रिटेन की मशहूर विज्ञान पत्रिका ‘लैंसेट’ की रिपोर्ट छपी थी। जिसमें कहा गया था कि अगर भारत ने अपनी तेज़ी से बढ़ती आबादी के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया तो देश का आर्थिक विकास ख़तरे में पड़ सकता है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि स्वास्थ्य सेवाओं तक ग़रीबों की पहुँच नहीं है और कई बीमारियाँ महामारी बनने के कगार पर हैं जो अमीरों और ग़रीबों दोनों को प्रभावित कर रही हैं।
इसी साल ठीक 5 महीने बाद 2011 के मई महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (ब्ल्यूएचओ) ने भी चेतावनी दे डाली। जारी एक बयान में डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत सरकार द्वारा मात्र 32 डॉलर प्रति व्यक्ति का खर्च स्वास्थ्य सुविधा की दयनीय दशा को दर्शाता है, जिसकी वजह से देश गरीब और समृद्ध, दोनों वर्ग के लोगों को होने वाली बीमारियों के दोहरे बोझ का सामना कर रहा है। और फिर हार्वर्ड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ ने भी एक रिपोर्ट जारी की।
जिसमें बताया गया था कि ऐसे रोगों की वजह से हमारे देश भारत में 2012 से 2030 की अवधि में 6.2 खरब डालर का बोझ बढ़ेगा। यह रकम देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछले दो दशकों में खर्च की गई राशि 710 अरब डालर से नौ गुना ज्यादा है। अकसर लोग धनार्जन की उम्र में रोगग्रस्त होकर अपनी कार्य क्षमता खो देते हैं।
वैसे भी हम सब इस सच्चाई से बखूबी वाकिफ हैं कि अगर हमारे पास बिजली नहीं है तो किसी तरह इस असुविधा के साथ कुछ वक्त रह सकते हैं, अगर सड़कें खराब हों तो भी हम खस्ता हाल रास्तों से धीरे-धीरे दूरी तय करने की सोच सकते हैं। लेकिन अगर हम खुद बीमार हैं, तो छोटी से छोटी परेशानियों से भी निपटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। और इसी हालात से दो-चार हैं हमारे देश के ग्रामीण। मध्य प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण भी इस सच्चाई से इत्तफाक रखते हैं।
एक अनुभवी आईएएस अधिकारी, प्रवीर कृष्ण भी लगातार इस कोशिश में जुटे हैं कि कैसे अपने राज्य में शिशु व मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाई जाए। मध्य प्रदेश सरकार की और से स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता व संवेदनशीलता का माहौल बनाने की भरपूर कोशिश जारी है, जिसके लिए संपर्क सेतू जैसी प्रणाली की जरूरत है जिससे जरूरतमंद की स्वास्थ विभाग के सभी कर्मचारियों से 24 घंटे में किसी समय संपर्क कर सकें।
सरकार की ईमानदार कोशिश मध्य प्रदेश में 52 हजार गांवों में दिखती है जो 51 जिलों में फैले हैं। आज इन 52 हजार गांवों में 90 हजार से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी कार्यरत हैं। पूरा समुदाय आपस में एक दूसरे से जुड़ा हुआ है और इस सुविधा को उपयोग करने वाले समुह बनाए हैं। लगभग 13 हज़ार स्वास्थ्यकर्मियों को यह मोबाइल फोन कनेक्शन दिया गया है, जिसका मतलब है कि 77 हजार लोग समुह से सीधे संपर्क में हैं।
खुद प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण भी सुबह साढ़े चार बजे उठकर प्रखण्ड स्तर, जिला स्तर के कर्मियों से स्काईप व फेसबुक के माध्यम से बात करते हैं। जबकि प्रधान सचिव के फेसबुक पेज पर 3 हजार फॉलोअर हैं और ऑफिशियल पेज जिसका नाम टीम हेल्थ एमपी है पर करीब 5 हजार सदस्य हैं, जो सीधे संपर्क में रहते हैं, जिसका प्रभाव हमें आंकड़ों को देखकर पता चलता है।
इसका एक ताजा उदाहरण है राज्य में मातृत्व मृत्युदर में कमी। पिछले दो सालों में मध्य प्रदेश में मातृत्व मृत्यु दर 310 (प्रति एक लाख) से घटकर 277 हो गई है, जिसे अगले दो सालों में इसे घटाकर 100 पर लाने का लक्ष्य है। जनसाधारण के लिए बेहतर स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने 12 सॉफ्टवेयर विकसित किए हैं ताकि 100 सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं को नियंत्रित किया जा सके। इसमें मातृत्व व शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण, रोग नियंत्रण, टीबी, सप्लाई चेन और रोगों के फेलने और उनके प्रकोप में परिवर्तित होने के पुर्वानुमान शामिल हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य बीमा, दवाई, स्वास्थ्य कार्यकर्ता के द्वारा सामुदायिक कार्य भी शामिल हैं। इस सबके लिए सबसे अहम कार्य इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी संभव सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना है।
हालांकि स्वास्थ्य कर्मी से फोन के द्वारा जुड़ने के बाद भी स्वास्थ्य सचिव के लिए यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि कितने स्वास्थ्यकर्मी स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रमुख सचिव भी ऐसी परिस्थिति की कल्पना करते हैं कि कम से कम सभी 90 हजार स्वास्थ्य कर्मियों के पास टू जी की सुविधा तो होनी चाहिए। वो चाहते हैं कि लाइव बातचीत हो जहां कि न सिर्फ एसएमएस के माध्यम से बल्कि वीडियो, ऑडियो, सोशल मीडिया व बेहतर लेखन तथ्य प्राप्त हो सके। इसके साथ-साथ स्वास्थ्य कर्मी भी तकनीकी रूप से सक्षम हों ताकि वे सूचना का सकारात्मक व प्रभावी ढंग से आदान-प्रदान कर सकें।
ऐसे में आज देश की नई मजबूत सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है कि कैसे वो देश के करीब 20 लाख स्वास्थ्य कर्मियों को सूचना और तकनीक से जोड़ सकेगी, ताकि सरकार की तमाम योजनाएं और सुविधाएं देश के करोड़ों जरुरतमंदों तक आसानी से पहुंचाई जा सके।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
इस कॉलम को पढ़ने के लिए क्लिक करें gaonconnection.com