मार्शल मैकलुहान ने ग्लोबल विलेज की जब धारणा पेश की तो ज्यादातर विचारकों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया । लेकिन, आज सारी दुनिया में ग्लोबल विलेज की धारणा का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि, अबतक बतौर ग्लोबल विलेज पूरी दुनिया को बांधने का काम, अगर किसी ने किया है तो वो है टीवी और उपग्रह। जबकि इंटरनेट ने इसे एक नया आयाम दे डाला है। इसी का एक जीता जागता उदाहरण है स्पेन के दूसरे सबसे बड़े शहर बार्सिलोना से 75 किलोमीटर दूर बसा एक छोटा सा गांव गुर्ब, जिसे दुनिया के सबसे बड़े वायरलेस नेटवर्क होने का सौभाग्य प्राप्त है। हालांकि 21वीं सदी में ये एक छोटी सी मिसाल है जहां इंटरनेट की बदौलत हर शख्स अपनी पहुंच दुनिया के दूसरे कोने तक बना चुका है।
दरअसल, मैकलुहान की कल्पना को दुनिया के एक कोने में अमली जामा पहनाने का श्रेय 48 साल के रामोन रोका को जाता है, जिन्होंने 10 साल पहले ही अमेरिका से वापस आकर अपने गांव गुर्ब में बसने का फैसला किया था। तब गुर्ब गांव में इंटरनेट की कोई सुविधा नहीं थी, लोगों सूचना के लिए गांव से 8 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।
तभी उन्होंने फैसला किया कि अपने गांव को इस सुविधा से महरूम नहीं रहने देंगे और हर ग्रामीण को सूचना और तकनीक से संपन्न करेंगे। और आज ठीक 10 साल बाद, गुर्ब गांव वॉयरलेस नेटवर्क के माध्यम से पूरी तक जुड़ चुका है, जहां हर शख्स खुद को एक दूसरे के करीब पाता है।
हालांकि, इस उपलब्धि के पीछे 10 साल का कड़ा संघर्ष और एक लंबी कहानी छिपी है। दरअसल, अमेरिका से लौटकर रामोन अपने गांव या शहर में ही रह कर यह काम करना चाहते थे, जिसके लिए उन्हें इंटरनेट की जरूरत महसूस हुई। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने एक आसान तरीका ढूंढ़ निकाला। ये तरीका था वायरलेस रिले करने वाले मॉडम के जरिए इंटरनेट की सुविधा प्राप्त करना, जिसे उन्होंने अपने छत पर लगा रखा था। उनकी इस कोशिश से उनके पड़ोसी काफी प्रभावित हुए और उन्होंने रामोन से अपने लिए भी इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने की गुजारिश की।
अपने पड़ोसियों की मांग और जरूरतों को पूरा करने के लिए रामोन ने उन्हें इंटरनेट के लिए जरूरी उपकरण यानी मॉडम खरीदने को कहा। फिर क्या था देखते ही देखते बहुत सारे लोगों ने मॉडम खरीद लिए और रामोन की निर्देश पर लोगों ने अपने-अपने घरों की छत पर इंटरनेट के लिए एंटीना लगाए, ताकि इंटरनेट की तरगों को आसानी से प्राप्त किया जा सके। देखते ही देखते पूरा गांव फ्री इंटरनेट सेवा से जुड़ गया।
इसी तरह धीरे-धीरे फ्री वायरलेस इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों के नेटवर्क का विस्तार होने लगा औऱ फिर एक दिन गुईफाई डॉट नेट के नाम से मशहूर हो गया। हालांकि, ये गुईफाई डॉट नेट यानी वायरलेस इंटरनेट सेवा निशुल्क है, फिर भी इसके रखरखाव के लिए ग्रामीण अपनी इच्छा अनुसार सहयोग राशि दे सकते हैं।
आज पूरे बार्सिलोना में गुईफाई डॉट नेट के पास 25 हज़ार से भी ज्यादा इंटरनेट क्नेक्टिविटी नोड्स हैं। एक नोड से लगभग दो या तीन लोगों का क्नेक्शन हैं औऱ हर हफ्ते करीब 150 नए नोड्स भी जुड़ रहे हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि इंटरनेट युग में आज की तारीख में शायद गुईफाई डॉट नेट दुनिया का सबसे बड़ा वायरलेस इंटरनेट नेटवर्क बन चुका है जिसपर किसी का एकाधिकार नहीं हैं। यानी इसका मालिकाना हक समुदाय के सभी सदस्यों के पास है जो गुईफाई डॉट नेट के सदस्य हैं,
जिनमें समुदाय, परिवार, कॉरपोरेट, एनजीओ और यहां तक ही बहुत छोटे इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISPs) भी शामिल हैं।
पिछले सप्ताह बार्सिलोना में मुझे भी रामोन रोका को करीब से जानने का मौका मिला। उनके मुताबिक, वो खुद तकनीक बेहद सरल मानते हैं, जो बहुत सारी मुश्किलों का हल निकाल सकती है। उनका ये भी मानना है कि अगर लोग भी तकनीक की तरह आसान हो जाएं तो नेटवर्क की सरंचना और नई प्रमाणिकता की पर्याय बन जाए। मुलाकात के दौरान रामोन ने ये भी कहा कि टेलिकॉम आधारभूत सुविधाएं एक व्यक्ति के पास सीमित नहीं रहनी चाहिए। बल्कि इसके प्रसार के लिए उपयोगकर्ताओं को दिल से कोशिश करनी चाहिए।
और बार्सिलोना में इसी सच्चाई को हमने भी जानने की कोशिश की। गुईफाई डॉट नेट पर विज़िट करने पर हमें भी इसकी पारदर्शिता का अहसास हुआ। गुईफाई डॉट नेट पर लॉगइन करने से लेकर लास्ट मिनट तक के डिटेल के अलावा इस्तेमाल करने वालों की संख्या, कितने नोड काम कर रहे हैं, कितने बंद पड़े हैं यह सब आसानी से हम जान पाते हैं। काश, ये कोशिश हमारे देश में भी की गई होती।
भारत की बहुत बड़ी आबादी आज भी संचार और तकनीक की पहुंच से कोसों दूर है। मगर गुईफाई डॉट नेट की ताकत को समझने के बाद मुझे यकीन है कि अगर यह मॉडल भारत में अपनाया जाए तो कम से कम जो ढेर सारे वायरलेस नेटवर्क हमने (डिजिटल एंप्वारमेंट फाउंडेशन ने) देश के अलग-अलग हिस्सों में लगाए हैं उनका प्रसार और तेजी से हो सकेगा। ताकि न सिर्फ सुदूर इलाकों में बसे समुदाय, बल्कि छोटे मोटे शहरों भी लोग इससे जुड़कर सूचना संपन्न समाज का निर्माण कर सकते हैं। अगर आप हमारे इस अभियान में हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं तो आपका स्वागत है।
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