2011 जनगणना में पाया गया कि देश में करीब 30 लाख ऐसे लोग हैं जो गोंडी भाषा बोलते हैं। जबकि गोंडी भाषा पर शोध करने वालों की मानें तो ये संख्या करीब 1 करोड़ तक पहुंच जाती है।
दरअसल, गोंडी भाषा मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडीशा और आंध्र-प्रदेश में बसे आदिवासी लोगों द्वारा बोली जाती है। और ये इलाके पूरी तरह माओवादी क्षेत्र हैं, जहां गोंडी भाषा बोलने वाले रहते हैं। ऐसे हालात में गोंडी क्षेत्रों में जनगणना करना इतना आसान नहीं था।
हालांकि, वैसे भी आम तौर पर हर शख्स कम से कम 3 से 4 भाषाएं समझ या बोल सकता है। आप अपना आंकलन भी करेंगे तो पाएंगे कि आप खुद भी कुछ भाषाएं आसानी से समझ पाने में सक्षम हो गए होंगे। इस सबका श्रेय जाता है हमारे देश के सूचना प्रसारण माध्यमों को। किताबों के अलावा रेडियो, टीवी और अखबारों और फिल्मों के ज़रिए हम जाने अंजाने में कुछ भाषाओं को समझने लगते हैं। मगर दूसरी तरफ गोंडी भाषा हमेशा से कुछ लोगों तक ही सीमित रह गई। क्योंकि न तो उनके पास रेडियो होता है, न टीवी और नाहीं अखबार। यही नहीं, गोंडी भाषा के लिए कभी किसी मीडिया या मीडिया कर्मी ने भी पहल नहीं की। आज की तारीख में कोई एक ऐसा मीडिया नहीं है जिसने गोंडी लोगों की खबर प्रसारित करता हो, उनकी बात करता हो, उनकी समस्याओं, उनकी सांस्कृति की बात करता हो या फिर खुद को गोंडी लोगों के लिए उपलब्ध कराता हो। इसी अभाव ने इस आदिवासी समाज को झकझोर कर रख दिया। फिर धीरे-धीरे इन आदिवासी समाज में सूचना पाने की ललक ने उन्हें स्वेच्छा से अपना पैसा खर्च कर देश-दुनिया में क्या हो रहा है, इसकी खबरें पाने के लिए प्रेरित किया। और मोबाइल फोन ने धीरे-धीरे उनके समाज में दस्तक दी।
शुक्र है मोबाइल क्रांति का, जिसकी वजह से अन्य भाषाओं की तरह गोंडी भाषा का भी प्रचार-प्रसार तेजी से हुआ। लेकिन, ग्रामीण इलाकों में इसका प्रसार अपेक्षाकृत कम हुआ। इसका अंदाजा गोंडी भाषी क्षेत्रों से पता चलता है जहां मोबाइल के सिवा उनके पास संपर्क और सूचना पाने का कोई दूसरा माध्यम नहीं है। ये और बात है कि इन क्षेत्रों में उनके मोबाइल ज्यादातर बंद ही रहते हैं। इसकी वजह साफ है- कमजोर मोबाइल नेटवर्क कवरेज और बिजली की किल्लत। क्योंकि मोबाइल चार्ज करने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है और अगर मोबाइल चार्ज है तो उसे इस्तेमाल करने के लिए ऑपरेटर नेटवर्क का होना जरूरी है।
ऐसे हालात में उन्हें मोबाइल चार्ज करना हो तो किसी ऐसे क्षेत्र को ढूंढ़ते हैं जहां बिजली सप्लाई हो। यही समस्या कॉल करने के लिए भी होती है, कुछेक ही स्थान मिलेंगे जहां आपको पूरा नेटवर्क मिलेगा और आप किसी से संपर्क साध सकेंगे। लेकिन, पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है।
जहां देश के लोगों समेत मीडिया कर्मी गोंडी भाषा और गोंडवाना क्षेत्रों से लगभग अनभिज्ञ हैं वहीं पिछले कुछ वर्षों से बीबीसी के पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी के लिए गोंडी भाषा, गोंडवाणा क्षेत्र और यहां के लोग गहन शोध का विषय बन चुके हैं। शुभ्रांशु गोंडी भाषा के लिए एक वेबसाइट “सीजीनेट स्वरा” चलाते हैं जो “गोंडी की आवाज़, उनकी संस्कृति का प्रसार, उनके गीतों की बात, उनकी समस्याओं को प्रसारित करते हैं। इन सब के प्रसारण के लिए मोबाइल फोन के माध्यम से रिकोर्डिंग की जाती है। पूर्व एमबिलियंथ अवॉर्ड विजेता शुभ्रांशु मोबाइल फोन को पत्रकारिता के लिए टूल के रूप में इस्तेमाल कर नागरिक पत्रकारिता (Citizen Journalism) की सशक्त मिसाल पेश कर रहे हैं। इस सबके लिए शुभ्रांशु गर्व के पात्र हैं कि वे सूचना व मीडिया के जनतांत्रिकीकरण के लिए इंटरनेट और मोबाइल फोन का बाखूबी उपयोग कर रहे हैं।
किसी क्षेत्र की कमियों को वहां की ताकत कैसे बनाया जा सकता है ये शुभ्रांशु बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं। गोंडवाणा क्षेत्रों में जहां मोबाइल के अलावा कोई और मीडिया टूल उपलब्ध ही नहीं हैं वहां उन्होंने मोबाइल को इस क्षेत्र का वो माध्यम बना दिया जिससे आज यहां के लोग दुनिया की मुख्यधारा तक अपनी बात पहुंचाने में सफल हुए हैं। वहीं आज गोंडवाणा की बात इंटरनेट पर की जाती है। यह एक चुनौती थी कि किस प्रकार गोंडी के अशिक्षित लोगों को उनकी बात खुद उनकी जुबानी कहने के लिए मोबाइल पर रिकोर्डिंग करना, उन्हें कॉल करना सीखाया गया। आज http://cgnetswara.org पर गोंडवाणा क्षेत्र के लोगों की दुनिया की चर्चा आप सुन सकते हैं वो भी गोंडी भाषा में ही। शुभ्रांशु चौधरी चाहते हैं कि पूरे मीडिया का सही मायनों में लोकतंत्रीकरण किया जाए। चूंकि आज सूचना कुछ सीमित लोगों के हाथ में न रहकर जनता के हाथ में हो और इसके लिए समान माध्यम जैसे इंटरनेट और मोबाइल से इसे सफल बनाना संभव हो सके।
इस सोच को अमली जामा पहनाने के लिए शुभ्रांशु चौधरी ने पिछले कुछ समय में सीजीनेट स्वरा के बैनल तले 20 गोंडी आदिवासियों के साथ दो दल बनाकर काम शुरू किया। इसके l तहत उन्होंने दो अलग-अलग रास्तों का चुनाव किया ताकि गोंडवाणा क्षेत्र के 5 राज्यों के अधिकांश क्षेत्रों को कवर किया जा सके। पहले, सीजीनेट स्वरा ने इन क्षेत्रों से 40 युवाओं को चुनकर उन्हें 10 दिन की वर्कशॉप में ट्रेनिंग दी। फिर अंत में इनमें से 20 को चुनकर स्वयंसेवी, प्रतिनिधि और नागरिक पत्रकार के रूप में चुना। इस वर्कशॉप का उद्देश्य था कि यह लोग मौखिक माध्यम जैसे कठपुतली, नुक्कड़ नाटक, कला मंच और सांस्कृतिक शो आदि का सहारा लेकर हाट, बाजार, चौराहों और गांवों की चौपालों आदि पर लोगों को इक्ट्ठा कर उन्हें मोबाइल के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा उनका प्रसार सीखाना था। एक महीने में ही शुभ्रांशु ने अपने दल के साथ 300 कार्यक्रम आयोजित किए जिसमें उन्होंने दो से चार गांव और दो से तीन हाट हर दिन कवर किए। गोंडी भाषा के सभी पांच राज्यों में दौरा करने के बाद नतीजतन आज सीजीनेट स्वरा को गोंडवाणा क्षेत्रों के गोंडी बोलने वाले लोगों के 800 कॉल हर रोज प्राप्त हो रहे हैं, जो ज्यादातर अपने क्षेत्रों के मुद्दों जल, ज़मीन दोहन, असुविधाओं व सरकारी योजनाओं के लाभों की कमी पर बात करते हैं।
यह अपने आप में एक रोचक है कि किस प्रकार मोबाइल पत्रकारिता के क्षेत्र में लोकतांत्रिक माध्यम उपकरण के रूप में उभरकर सामने आया है। वो भी उन लोगों के लिए जो अधिकांश निरक्षर हैं और ऐसी भाषा बोलते हैं जिससे देश के लोगों आज भी अंजान हैं
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