कोविड-19 के लॉकडाउन के कारण दिल्ली के प्रवासी कामगारों को न तो नौकरी है और न ही सामाजिक सुरक्षा; विशेषज्ञ कानूनी संरक्षण और राजनीतिक उदासीनता को ज़िम्मेदार मानते हैं.

बिहार के आरा जिले के ललन यादव दिल्ली के वज़ीरपुर में मछली मोहल्ले में रहते हैं. ललन को कोरोना से अधिक रोज़गार की चिंता सता रही है. वह कहते हैं, “हमलोग मज़दूर आदमी कमायेंगे नहीं तो परिवार खायेगा क्या. मैं अपने घर में अकेला कमाने वाला हूँ. मार्च से काम नहीं मिला है.

कोरोना महामारी के समय दिल्ली के पंजीकृत निर्माण मजदूरों को नहीं मिल पा रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

दिल्ली के इंदिरा विकास कॉलोनी में रहने वाले 32 वर्षीय प्रमोद दास लॉकडाउन की बढ़ती अवधि से चिंतित हैं। प्रमोद निर्माण के क्षेत्र में दिहाड़ी-मज़दूरी करते हैं। वह कहते हैं, “पहले तो प्रदूषण के कारण काम बंद रहा। अब कोरोना वायरस के कारण काम मिलना बंद हो गया है। हम लोग दिहाड़ी-मज़दूरी करते हैं, काम नहीं मिलेगा तो कहां से खाएंगे?”

सरकारी गोदाम में सड़ रहा अनाज: राशन कार्ड नहीं होने के कारण भूखे सोने पर मज़बूर है करोड़ों परिवार

बिहार के पश्चिमी चंपारण के पचकहर गांव की 35 वर्षीय मनीषा देवी को राशन कार्ड में संशोधन के लिए आवेदन दिए हुए इस महीने की 27 तारीख को पूरे दो वर्ष हो जायेंगे, उन्हें अपने राशन कार्ड का अब तक इंतज़ार है. मनीषा कहती हैं, “राशन कार्ड के लिए चक्कर लगा-लगा कर थक गयी, अब तक राशन कार्ड बन कर नहीं आया”.

समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और दुष्प्रचार: क़ानूनी प्रतिक्रिया और समस्या (भाग पांच)

लिंचिंग जैसी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं हैं. आये दिन कहीं न कहीं भीड़ किसी को भी पकड़ कर हत्या कर दे रही है. 16 अप्रैल, 2020 को भीड़ ने महाराष्ट्र के पालघर में 2 साधु समेत उनके ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या कर दी. शुरुआती ख़बरों के अनुसार इलाके में बच्चा चोरी की अफ़वाह गर्म थी.