‘काश! पहाड़ खोदने के बजाए ‘ग्राम आधारित विकास’ पर ध्यान दिया होता’

उत्तराखंड में आसमान से बरसी आफत ने जबरदस्त तबाही मचाई है। खत्म होती जिंद‌गियां, उफनती नदियां और ताश के पत्ते की तरह बिखरते घर इसके गवाह हैं, जिसने आपदा प्रबंधन की तैयारियों की पोल खोल कर रख दी है। उत्तराखंड ही नहीं आज यह पूरे देश की कड़वी सच्चाई है कि कहीं भी आपदा प्रबंधन…

टेलीग्राम को आखिरी सलाम

वैसे तो साल 2013 कई मायने में महत्वपूर्ण है, लेकिन खासकर सूचना तकनीक के क्षेत्र के लिए साल 2013 कुछ खास ही रहा है। इसी साल 1 जनवरी 2013 को इंटरनेट ने जहां अपने 30 साल पूरे कर लिए, वहीं परम्परागत कैमरे में इस्तेमाल होने वाली कोडैक्रोम फिल्मों से तस्वीरें विकसित करने वाली दुनिया की…

एक ऐसा गांव जहां हर घर की खाट खड़ी नहीं, उल्टी मिलेगी…

इस बार मैं एक तस्वीर के सहारे आपको देश के कुछ इलाकों की सच्चाई से रूबरू कराउंगा। आंध्र प्रदेश के एक गांव की तस्वीर, जिसमें समुद्र के किनारे मछली पकड़ने की जाल लिए बैठा मछुआरा, उड़ीसा के मुस्लिम बहुल इलाके में लोगों के बीच बैठे मुल्ला जी और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सीढी़नुमा खेत…

गांवों में मोबाइल गवर्नेस की जरूरत

तेईस साल की राखी पालीवाल राजस्थान के राजसमंद जिले में उपली-ओदेन पंचायत की उप-प्रमुख हैं। वह एकमात्र चुनी हुई महिला सदस्य हैं, जो बाइक चलाती हैं। सुबह चार बजे उठकर खुले में शौच के खिलाफ महिलाओं को सलाह देती हैं। दिन में लॉ स्कूल जाती हैं और स्मार्टफोन से फेसबुक अपडेट करती हैं। बीते मार्च…

पहाड़ी इलाकों में विकास से ही पलायन पर काबू संभव

पहचान और विकास की चाह की वजह से पहाड़ों में जिस जनांदोलन की शुरुआत हुई थी, वो 12 साल में ही निरर्थक हो गया। आज विडंबना यह है कि अलगाव की वो काली छाया उत्तराखंड के पहाड़ों को आहिस्ता-आहिस्ता अपनी चपेट में ले रही है। जहां एक तरफ हमारा देश लगातार उन्नति औऱ विकास की…

भद्रक में सीआईआरसी से लोगों को बड़ी उम्मीदें

ओढ़िशा की राजधानी भुवनेश्वर से करीब 144 किलोमीटर दूर भद्रक नाम का एक ऐसा जिला है, जो मुगल तमाशा के लिए मशहूर है। इस अनोखी कला को हिन्दू एवं मुसलमान संप्रदाय के कलाकार इसे खास अंदाज में पेश करते हैं, जो उनकी रोजी रोटी का जरिया भी है। इसी जिले का एक छोटा सा हमनाम…

आदिवासियों तक पहुंचे डिजिटल शिक्षा

आदिवासी समुदायों की रक्षा के लिए असम में साल 1976 में कार्बी आंगलोंग जिले का गठन किया गया। यह असम व संभवत: उत्तर-पूर्व क्षेत्र में सबसे बड़ा जिला है। यहां कार्बी, बोडो, कुकी जैसी जनजातियां बसती हैं। यह जिला देश के 250 अत्यंत पिछड़े जिलों में भी गिना जाता है। 1995 में समावेशी विकास को…

डिजिटल युग में पानी, तेरा रंग कैसा? ‘चेहरे के उतरे हुए रंग जैसा’

एक बहुत ही पुराना फिल्मी गाना है- ‘पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा। जिसमें मिला दो लगे उस जैसा।’ बचपन में कई बार सुना था। तब मैं नादान था, गाने का असल मतलब समझ नहीं पाया। अब पल्ले पड़ा है। हर आदमी की जिंदगी में अक्सर ऐसा होता है।जैसे – जैसे उम्र बढ़ती जाती है,…

सकारात्मक नीति और सौर उर्जा ही विकास की कुंजी

क्या कभी आपने सोचा है कि जो हम बार-बार विकास औऱ तकनीक की बात करते हैं, उसकी गति में रह रहकर ब्रेक क्यों लग जाता है? इसका एक मात्र कारण है विकास के लिए बुनियादी जरूरत में कमी का होना। और वो बुनियादी जरूरत है बिजली। कोई देश कैसे वैश्विक ताक़त बनने के ख़्वाब देख…