समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और फेक न्यूज़: क़ानूनी प्रतिक्रिया और प्रेस की स्वतंत्रता (तीसरा भाग)

निष्पक्ष पत्रकारिता किसी भी लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए महत्तपूर्ण है. हाल के दिनों में ये देखा जा रहा है कि अधिकतर पत्रकार सत्ता पक्ष का शंख बजा रहे हैं. सत्ता पक्ष को छोड़ कर विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को देशविरोधी बता कर उन्हें दबाने का प्रयास कर रहे हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाली सरकार के द्वारा पास किये गए क़ानून के खिलाफ़ नाटक करने के लिए, बीदर के विध्यालय के एक छात्र पर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज कर के गिरफ्तार कर लिया गया. न्यूज़लांड्री में रमित वर्मा ने, 4 मुख्यधारा के न्यूज़ चैनल्स- आज तक, न्यूज़18, जी न्यूज़ और इंडिया टीवी- पर 2019 में हुए 202 प्राइम टाइम डिबेट का विश्लेषण किया है. रमित अपने विश्लेषण में बताते हैं, 202 में से 79 डिबेट पाकिस्तान को ले कर हुए हैं, विपक्ष पर 66 डिबेट में हमला किया गया, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी की तारीफ़ 66 डिबेट हुए. राम मंदिर पर 14, जबकि अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, शिक्षा और किसानों के मुद्दे पर एक भी डिबेट नहीं किया गया.

समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और दुष्प्रचार: वास्तिविकता और क़ानूनी प्रतिक्रिया (दूसरा भाग)

भीड़ के द्वारा हो रही हत्याएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. आए-दिन कहीं न कहीं से हत्या की ख़बरें आती रहती हैं. कहीं गाय ले जा रहे किसी व्यक्ति को कोई भीड़ घेर कर हत्या कर देती है, तो कहीं बच्चा चोर के नाम पर किसी सड़क चलते व्यक्ति की भीड़ जान ले लेती है. बिहार में हाल ही में भीड़ ने गाय कि चोरी ने नाम पर 3 व्यक्ती की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी थी. ऐसी घटनाओं में 2014 कि बाद तेजी से बढ़ोतरी हुई हैं. इंडियास्पेंड कि रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2019 कि बीच में लिंचिंग की 94 घटनाएँ हुई थी, जिस में 35 लोग मारे गए और 224 व्यक्ति घायल हुए. ऐसी घटनाओं में, 2014 के बाद से तेजी से वृद्धि हुई है. लिंचिंग की सब से अधिक 44 घटना 2017 में दर्ज की गयी थी. लिंचिंग को रोकने के लिए सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है. सरकार सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहरा कर अपना पल्ला झाड़ने का पूरा प्रयास कर रही है. ऐस बताया जा रहा है कि भीड़ के द्वारा की जा रही हत्याओं के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे, व्हाट्सएप्प, फेसबुक, ट्विटर इत्यादिपर हो रहे दुष्प्रचार और फेक न्यूज़ जिम्मेदार हैं.

लिंचिंग, सोशल मीडिया, फेक न्यूज़: कानूनी प्रतिक्रिया (पहला भाग)

इंटरनेट ने समाज को अलग-अलग ढंग से बदला है. इंटरनेट ने नए-नए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जन्म दिया. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने समाज के सबसे निचले तबके तक को एक आवाज़ दी, एक पहचान दी. सामाजिक परिवर्तन में यह एक अहम भूमिका निभा रहा है. सोशल मीडिया से शुरू हुए मीटू आंदोलन ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया. अलग क्षेत्रों की महिलाओं ने अपने साथ होने वाली घटनाओं के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपनी आवाज़ बुलंद की. लेकिन इस माध्यम का दुरुपयोग भी किया जा रहा है. दुष्प्रचार से लेकर तमाम तरह की अफ़वाहों को इन प्लैफॉर्म्स पर फैलाया जा रहा है. कई दफा ऐसी अफ़वाहों के कारण हिंसा भी हुई.

कोरोना महामारी के समय दिल्ली के पंजीकृत निर्माण मजदूरों को नहीं मिल पा रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

दिल्ली के इंदिरा विकास कॉलोनी में रहने वाले 32 वर्षीय प्रमोद दास लॉकडाउन की बढ़ती अवधि से चिंतित हैं। प्रमोद निर्माण के क्षेत्र में दिहाड़ी-मज़दूरी करते हैं। वह कहते हैं, “पहले तो प्रदूषण के कारण काम बंद रहा। अब कोरोना वायरस के कारण काम मिलना बंद हो गया है। हम लोग दिहाड़ी-मज़दूरी करते हैं, काम नहीं मिलेगा तो कहां से खाएंगे?”

सरकारी गोदाम में सड़ रहा अनाज: राशन कार्ड नहीं होने के कारण भूखे सोने पर मज़बूर है करोड़ों परिवार

बिहार के पश्चिमी चंपारण के पचकहर गांव की 35 वर्षीय मनीषा देवी को राशन कार्ड में संशोधन के लिए आवेदन दिए हुए इस महीने की 27 तारीख को पूरे दो वर्ष हो जायेंगे, उन्हें अपने राशन कार्ड का अब तक इंतज़ार है. मनीषा कहती हैं, “राशन कार्ड के लिए चक्कर लगा-लगा कर थक गयी, अब तक राशन कार्ड बन कर नहीं आया”.

समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और दुष्प्रचार: क़ानूनी प्रतिक्रिया और समस्या (भाग पांच)

लिंचिंग जैसी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं हैं. आये दिन कहीं न कहीं भीड़ किसी को भी पकड़ कर हत्या कर दे रही है. 16 अप्रैल, 2020 को भीड़ ने महाराष्ट्र के पालघर में 2 साधु समेत उनके ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या कर दी. शुरुआती ख़बरों के अनुसार इलाके में बच्चा चोरी की अफ़वाह गर्म थी.

समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और दुष्प्रचार: क़ानूनी प्रतिक्रिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (चौथा भाग)

“मर्ज़ कहीं और है दवा कहीं और ढूंढ रही है सरकार,” यह बात रिहाई मंच के सचिव राजीव यादव ने आईटी एक्ट, 2000 में इंटरमेडियरी के दिशा-निर्देशों में सरकार के द्वारा किये जा रहे रहे बदलाव के संदर्भ में कही. राजीव आगे कहते हैं, “लिंचिंग के लिए फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया से कहीं अधिक ज़िम्मेदार राजनीतिक वातावरण है.

समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और फेक न्यूज़: क़ानूनी प्रतिक्रिया और प्रेस की स्वतंत्रता (तीसरा भाग)

निष्पक्ष पत्रकारिता किसी भी लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए महत्तपूर्ण है. हाल के दिनों में ये देखा जा रहा है कि अधिकतर पत्रकार सत्ता पक्ष का शंख बजा रहे हैं. सत्ता पक्ष को छोड़ कर विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को देशविरोधी बता कर उन्हें दबाने का प्रयास कर रहे हैं.

समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और दुष्प्रचार: वास्तिविकता और क़ानूनी प्रतिक्रिया (दूसरा भाग)

भीड़ के द्वारा हो रही हत्याएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. आए-दिन कहीं न कहीं से हत्या की ख़बरें आती रहती हैं. कहीं गाय ले जा रहे किसी व्यक्ति को कोई भीड़ घेर कर हत्या कर देती है, तो कहीं बच्चा चोर के नाम पर किसी सड़क चलते व्यक्ति की भीड़ जान ले लेती है.

लिंचिंग, सोशल मीडिया, फेक न्यूज़: कानूनी प्रतिक्रिया (पहला भाग)

इंटरनेट ने समाज को अलग-अलग ढंग से बदला है. इंटरनेट ने नए-नए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जन्म दिया. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने समाज के सबसे निचले तबके तक को एक आवाज़ दी, एक पहचान दी. सामाजिक परिवर्तन में यह एक अहम भूमिका निभा रहा है. सोशल मीडिया से शुरू हुए मीटू आंदोलन ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया.